Friday, 3 February 2012

मेरे दोस्त का मृत्यु-संदेश


कल रात मैंने उसे
अपनी आँखों के सामने
अस्थमा के दौरे से
मरते हुए देखा
सिकुड़ कर सोया था वह
चारों दिशाएँ मूक
संकुचित घर
घर में धुंधलका
मगर खुले मैदान
खुला आसमान
देखते-देखते उसकी जीवन लीला समाप्त
मैं द्रवित हो सोचने लगी
“ मानव जीवन नश्वर क्षण-भंगुर है”

मरते-मरते उसने कहा
“अलका ,इस क्षण संवेदन से मत हो व्याकुल
यह जीवन चिंतन ,जीवन गति
जीवन के स्वर ,जीवन की धारा में
रहो तुम अचंचल अविचलित निराकुल ।
अगर चार सौ साल जीता तो
क्या मैं सुखी होता ?
कदापि नहीं
अगर तुम नश्वर होना चाहती हो
तो सृजनशील जीवन के स्वर में गाओ तुम मरण-गीत
तुम कवियत्री हो
मुझ जैसे निर्बल मानव का यह संदेश
फैला दो चहुं ओर
मौत जीवन से ज्यादा सुखकर है । “
· · · 14 hou

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