Tuesday 7 February, 2012

सजा

कल रात एक झटके में
तिनका तिनका बिखर गया
आंधी आई और
कारवाँ
गुजर गया
तूफ़ान उसके देस में चला
आशियाँ मेरा उजड़ गया
हर बार की तरह खुद
को कटघरे में खड़ा पाया
मुजरिम कोई और था
मुकद्दमा मुझ पर चला
फिर एक बार सजा मेरे
हिस्से में आई
बादल उसके शहर पे बरसे
सैलाब में घर मेरा बहा
किसने सोचा था इतना
बेदर्द होगा ये आलम !
इक बार तकदीर के
आगे वफ़ा हार गई
गल्ती हमारी थी
भूल हमसे हुई
दीये को हम सूरज
और एक रात की ख़ुशी को
जिन्दगी का सफ़र समझ बैठे !!

1 comment:

  1. कल 28/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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