हिंदी साहित्य में अपने सक्षम लेखन-कार्य के लिए एक सुपरिचित नाम . अलका की कहानियों में नारीत्व का अहसास , सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति, गहरा जीवनबोध तथा कलात्मक परिधियों को ऊंचाई तक पहुंचा पाने का श्रेय कहानीकार को जाता है.अलका संवेदना से कहानीकार ,दृष्टि से साधारण गृहिणी तथा मन से सक्रिय नारीवादी कार्यकर्ता हैं.
Wednesday 5 October, 2011
मै तो राधा बन गई पर तुम बन ना पाए श्याम
"जल रही एक दीवाली "
" अहिल्या "
" अहिल्या "
कल जब मै तुम्हारे घर की तरफ आई
तो खुले देखे सब दरवाजे और खिड़की
मेरे अंतर्मन में हजारों पुष्प खिल गए
पर देखते-देखते दरवाजे बंद हो गए
यह देख मेरी रूह गहराई तक काँप गई
खुश्क आहों में मैं थर्रथर्राती रही
दर्द से बिलखकर सुबकती रही
गिड़गिडाकर इन्तजार करती रही
बाहर खड़ी दरवाजा खुलने का
पर कोई दरवाजा नहीं खुला
मै बहुत देर तक बाहर सामने की रेलिंग पर बैठी सोचती रही
शायद समय देखकर तुम आओगे
मुझे उठाओगे, अपने सीने से लगाओगे
पर तुम नहीं आए
मै वहीँ नीचे घास पर बैठे- बैठे सोती रही
सारी रात तुम्हारी राह देखती रही
आसमान मेरे आँसुओं का गवाह था
वो भी मेरे साथ पानी बरसा रहा था
धरती का आँचल भी मेरे साथ भीग रहा था
पास में बैंच के नीचे एक कुत्ता भी
बीच- बीच में अपनी नजर उठा लेता था
पेड़- पौधों की हालत भी मेरे जैसी थी
दूर एक गाय शायद प्रसव पीड़ा से तड़प रही थीहम सब मिलकर एक दूसरे का दुःख बाँट रहे थे
कई राह चलते मुझ पर बेचारी सी नजर डाल कर आगे बढ़ गए
जैसे ठंडी हवाएँ मेरे तन को छूकर जाती रही
मै हमेशा की तरह बारिश के तूफ़ान में भीगती रही
पर वहाँ कोई नहीं था मेरे आंसू पोंछने वाला
जब भी अँधेरे में कोई आकृति नजर आती
कि शायद तुम आए होंगे मै उठ कर बैठ जातीफिर अपना वहम समझ कर वहीँ लेट जाती
मुझे पहली बार उस अँधेरी भयानक रात से भी डर नहीं लगा
सुबह होते -होते आसमान भी बरस कर थक गया
पेड़- पौधे का अक्स भी उजली किरण में खिल गयाधरती की प्यास भी बुझ गई
कुत्ते को कहीं से एक हड्डी मिल गई
बछड़ा अपनी माँ का दूध पीने लगा
परन्तु मेरे नैनों का नीर कहाँ सूखने लगा?फिर मै भी मुक्त हो गई
मेरी रूह आँसुओं के सैलाब में विलीन हो गईपीछे छोड़ गई एक बेजान पत्थर का बुत
जो अहिल्या की तरह आज तक
किसी राम के आने का इन्तजार कर रहा है
पर कलयुग में कोई राम हो सकता है ?