Wednesday 5 October, 2011

मै तो राधा बन गई पर तुम बन ना पाए श्याम

मै तो राधा बन गई
पर तुम बन ना पाए श्याम

महफ़िल में होता रहा कौरवों के हाथों चीरहरण
तब किस वृक्ष, किस आश्रय की लेती शरण ?
तुम मूक आँखों से देखते रहे मेरा मरण
मै तो राधा बन गई
पर तुम बन ना पाए श्याम

वक्त के चलते जो जिल्लत सही
जिसकी कहानी कई बार तुमको कही
सुनकर हृदय तुम्हारा भीगता रहा
फिर दिए घाव आज तुमने भी वही
मै तो राधा बन गई
पर तुम बन ना पाए श्याम

मै मीरा बन भटकती रही डगर- डगर
राणा के हाथों पीती रही विष का कहर
नस- नस में लहू दौड़ने लगा बनके जहर
मै तो राधा बन गई
पर तुम बन ना पाए श्याम

तुम रुक्मणी के संसार में रमते रहे
मुझे होनी के हाथों रुसवा करवाते रहे
नीर से भीगा मेरा संदेशा जल कर भस्म हो गया
मै तो राधा बन गई
पर तुम बन ना पाए श्याम

मेरा तकिया रात के तूफानों में भीगता रहा
बादलों का दिल भी मेरे साथ पसीजता रहा
पर तुम गोवर्धन पर्वत लेकर ना आए
मै तो राधा बन गई
पर तुम बन ना पाए श्याम

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