Friday 20 January, 2012

धोखा


धोखा

उसके बगल में लेटकर
मैंने पहली बार महसूस किया
सुन्दरता शरीर की नहीं वरन
आत्मा की होती है
सुन्दर वह है जो सत्य होता है
और शिव भी
वह सुन्दरता जिससे
सच में किसी का अहित न हो
वह सुन्दर है
नहीं तो केवल कामुकता है
मुझे लगा कि नफ़रत से
उसने मुझे स्वार्थी, डरपोक और
धोखेबाज कहा
कभी देवता भी कहा था
पर ऐसा मैं कहाँ ?
जानता हूँ हर आदमी स्वार्थी और
डरपोक होता है
जो अपना अर्थ न जान सका
वह दूसरों को क्या जानेगा ?
डरपोक भी सही
हर आदमी के भीतर सत-असत
का अनवरत संघर्ष से
उपजी संवेदनाओं से
वह डरता है तो खराब क्या
क्या जमीर मर सकता है ?
अगर वह आदमी है तो
नहीं , मगर धोखेबाज
शब्द की परछाईं में
किसी खौफ़नाक बाज के चेहरे में
बदल गयी है, मेरी कविता
जो आज इस मुर्दे के मांस पर
ज़िन्दा है

उसके बगल में लेटकर
मैंने महसूस किया कि घर
छोटी-छोटी खुशियों से
बना है
उसे कुछ नहीं चाहिए था
सिर्फ एक टुकड़ा प्यार
जिसे पाने के लिए
उसने अपना जीवन दांव पर लगा दिया
जिसने मुझे इस तरह
सोचने पर मज़बूर कर दिया है
इस वक़्त यह सोचना कितना सुखद है
कि वह मेरे बगल में सोई है
सिर्फ मुरझाई आँखों से बीते कल की
दास्ताँ सुना रही है
और मैं सोने का स्वांग करता हूँ
मगर आँखों में नींद कहाँ
और मेरे भीतर एक कायर दिमाग़ है

जो मेरी रक्षा करता है और उसे
समझाने की कोशिश करता है
मैं आत्मह्त्या कर सकता हूँ
मगर तुम्हें धोखा नहीं दे सकता .


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