Monday, 24 March 2014

मेरा दीवाना है ...........



सांवली सलोनी सूरत वाला
 अलबेला अंजाना सा

वो और कोई नहीं
 मेरा दीवाना है ...........

हर अदा , हर वफ़ा उसकी
 दुनिया से निराला है

पत्थर में जान डाल दे
रोते को हंसाने वाला है

वो और कोई नहीं
 मेरा दीवाना है ...........

अपनी बातों से अपनी सादगी से
जीत ले दिल किसी का भी

ख़ुदा  का भेजा फरिश्ता
लगता नहीं बेगाना सा

वो और कोई नहीं
 मेरा दीवाना है ...........



थोड़े पलों में वो बन बैठा
 दिल का पैमाना है

जिन्दा दिली की अजब मिसाल
 वक्त को झुकाने वाला है

वो और कोई नहीं
मेरा दीवाना है ...........

Monday, 27 January 2014

बरसात




भारी बरसात के बाद नीलगगन
दिखता है कुछ ज्यादा ही नीला............
कुछ ज्यादा ही निखरा - निखरा.........

तेज धूप के बाद जब
धरती होने लगती है गर्म
हवाएं होने लगती है नम
उमड़ने लगते आसमान में घन
जल के छूने से धरा
खिल उठती होकर तृप्त
छट जाती है सब मिटटी  और  धूल
भर जाता है इक नव उजाला
पेड़ - पौधे नहाए से लगते हैं
फूल- पत्ते नए खिले से लगते हैं
पर्वत मालाएं भी दिखती है
दूर - दूर तक साफ़ - निर्मल
बर्फ की चादरें दिखती श्वेत - ध्वल

आँखों में भी तैरते हैं बादल
यादों के स्वर्णिम बादल
धीरे - धीरे विरह  की अग्नि में
पड़ जाते हैं काले
अहसास होने लगते हैं जब भारी
 टपकने लगते  बूँद  बारी- बारी
 बढ़ जाता है धुंधलापन
कोहरे का ढक जाता आवरण
सब  ओऱ फ़ैल जाता अन्धकार
नयनों से भी होती है बरसात
पर सब कुछ दिखता नहीं साफ़ -निर्मल  ?
क्यूँ छटती नहीं मिटटी  और  धूल ?

Friday, 24 January 2014

शब्द



जब तुम नहीं होते तो
शब्दों के सागर में गोते लगाते
अपना मन बहला लेती हूँ
कभी कोई कविता तो
कभी कोई नज्म बन जाती है
मेरी तरह आधी - अधूरी

कोई और नहीं वह मेरी अंतरात्मा ही है
तुम्हारे बिन कहीं न कहीं छटपटाती नजर आती
कभी गजल कभी गीत बनकर
कभी प्यासी नदी तो कभी प्रीत बनकर
आज कल हर कोई तो अपने को
शब्दों से बहलाता प्रतीत होता है
पर तुमने तो शायद यह भी
करना छोड़ दिया है
न कोई शब्द, न कोई संवाद
न कोई ध्वनि, न कोई उन्माद
बस चुप्पी, बस मौन पसरा है
सब जगह
पर कब तक ?
इन शब्दों से भी कोई
अपने को बहलायेगा
शब्द काल्पनिक दुनिया में घूमते रहते हैं
हकीकत से कोसों दूर
या होती है जिनमे बीतें लम्हों की कसक
या फिर अधूरे पलों की तमस
पर कुछ भी तो शब्दों में पूर्ण प्रतीत नहीं होता
सब कुछ अपूर्ण तुम्हारे बिन
हाँ कुछ समय के लिए अपने को
बहलाने का एक छोटे बच्चे की तरह
मात्र इक छलावा
पर कब तक ? 

Monday, 6 January 2014

 माली



इस दिल को करार मिले तो मिले कैसे
इन हालात में चाहत खिले कैसे
कौन किसे कसूरवार ठहराए  यहाँ  ...........

इस दर्द से निजात मिले तो मिले कैसे
इन जख्मों को कोई सिले  कैसे
मरहम भी बेअसर हो गई  यहाँ ..............

उनकी तस्वीर में रंग भरे तो भरे कैसे
इन आँखों से मोती पिरोये  कैसे
रौशनी भी बेपरवाह हो गई  यहाँ ..............

इस छटपटाहट को मुक्त करें तो करें कैसे
पंछियों की ऊँची उड़ान दिखे  कैसे
पंख भी मुरझा गए हैं जो अब यहाँ .......................

चेहरे की वीरानियों को कोई  पढ़े तो पढ़े कैसे
रूह की खामोशियों को कोई सुने  कैसे
बेवफाई का दौर चल पड़ा  जो यहाँ .................

तकदीर की लकीरों को पढ़ें तो पढ़ें कैसे
इन हाथों पर मेहंदी सजे  कैसे
हथेलियों पर पड़ गये छाले  यहाँ ..................

प्यार भरे नगमे सुने तो सुने कैसे
इन टूटती साँसों को हरा करे  कैसे
जुदाई की शाम ढलती ही नहीं यहाँ ...................

उजडें चमन में बहार दिखे तो दिखे कैसे
"माली " की बगिया में फूल खिले कैसे
पतझड़ में लुटी लताएँ  सब .यहाँ ..........................