जब तुम नहीं होते तो
शब्दों के सागर में गोते लगाते
अपना मन बहला लेती हूँ
कभी कोई कविता तो
कभी कोई नज्म बन जाती है
मेरी तरह आधी - अधूरी
कोई और नहीं वह मेरी अंतरात्मा ही है
तुम्हारे बिन कहीं न कहीं छटपटाती नजर आती
कभी गजल कभी गीत बनकर
कभी प्यासी नदी तो कभी प्रीत बनकर
आज कल हर कोई तो अपने को
शब्दों से बहलाता प्रतीत होता है
पर तुमने तो शायद यह भी
करना छोड़ दिया है
न कोई शब्द, न कोई संवाद
न कोई ध्वनि, न कोई उन्माद
बस चुप्पी, बस मौन पसरा है
सब जगह
पर कब तक ?
इन शब्दों से भी कोई
अपने को बहलायेगा
शब्द काल्पनिक दुनिया में घूमते रहते हैं
हकीकत से कोसों दूर
या होती है जिनमे बीतें लम्हों की कसक
या फिर अधूरे पलों की तमस
पर कुछ भी तो शब्दों में पूर्ण प्रतीत नहीं होता
सब कुछ अपूर्ण तुम्हारे बिन
हाँ कुछ समय के लिए अपने को
बहलाने का एक छोटे बच्चे की तरह
मात्र इक छलावा
पर कब तक ?
बेहतरीन और लाजवाब | हैट्स ऑफ इसके लिए |
ReplyDeletethanks
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