Tuesday, 30 November 2010

" इष्ट देव "











" इष्ट देव "

तुम.. मेरे जीवन दाता
...मेरे प्राणों के त्राता

मेरे भूखंड की बगिया के तुम माली
दर से तुम्हारे जाए ना कोई खाली

किरण तुम्हारी पहली वक्ष को मेरे जब सहलाए
ताप से तुम्हारे रात की औंस भी पिघल जाए

स्पर्श से तुम्हारे मेरा रोम- रोम पुलकित हो उठे
सीने में मेरे इन्द्रधनुष के सातों रंग खिल उठे

हृदय से छनकर पैगाम तुम्हारा जब आता है
गर्भ में मेरे कई नवजीवन खिला जाता है

मेघ का आवरण जब चेहरा तुम्हारा छुपा लेता है
दर्द विरह का रक्त रंजित आँखों में मेरी उतर जाता है

ढलती शाम तुम्हे क्षितिज पार मुझ से परे जब ले जाए
सीने की मेरी धधकती ज्वाला भी बुझ जाए

लालिमा तुम्हारी सुबह सवेरे जब मुझे जगाए
वजूद मेरा तुम्हारे वजूद में मिल जाए

जीवन धारा के हम चाहे अलग दो किनारे हैं
तुम्हारे प्रेम के रस में भीगे मेरे अलग नजारें हैं

सर्द रातों में मन मेरा तुम्हारी गर्म साँसों को तरसता
मेरी निर्जन आँखों से घायल हृदय का लहू बरसता

कोहरे भरी रातों में पूर्णिमा की चांदनी ना भाए
चमकते हुए तारों की परछाई भी मुझे डराए

मै धरा, तुम मेरे इष्ट देव

15 comments:

  1. Very Good, Mam

    You r genius in your poems. They said that " Beauty is the mixture of intelligence. " is quote is very fit in your poems. Evey indian should be saluted on your these selected rhymes.

    Regards;
    Your Next Poem's Waiting Man
    Rahul Singh

    ReplyDelete
  2. aap ke kavita bahut ache hai alkaji,really aap great ho,mai aap ke aane wale aagle kavita ka intzar karunga, thanks, all the best

    ReplyDelete
  3. अद्भुत रचना..... अलका जी बहुत बहुत बधाई ....

    ReplyDelete
  4. It's a very lovely & thoughtful presentation worth emulatig in one's life.

    ReplyDelete
  5. बहुत खूब....अलका सैनी जी...बहुत खूब.... कहा आपने...

    सर्द रातों में मन मेरा तुम्हारी गर्म साँसों को तरसता
    मेरी निर्जन आँखों से घायल हृदय का लहू बरसता

    कोहरे भरी रातों में पूर्णिमा की चांदनी ना भाए
    चमकते हुए तारों की परछाई भी मुझे डराए

    मै धरा, तुम मेरे इष्ट देव

    तस्वीर का मिलन भी बहुत ही खूबसूरत है......एक और सफल रचना के लिए बधाई स्वीकार करें....!

    ReplyDelete
  6. अद्भुत रचना..... अलका जी बहुत बहुत बधाई ...

    ReplyDelete
  7. Bahut Achchhi Rachna Alka Ji Ye Jo Samarpan,Ye Jo Arpan,Ye Jo Aaradhan Hai Yahi Prem Aur Sharishti Ka Aadhar Bindu Hai...

    ReplyDelete
  8. Chandan Singh Bhati1 December 2010 at 7:57 am

    bemisal rachana badhai

    ReplyDelete
  9. Shamsher Singh Bhullar1 December 2010 at 7:58 am

    Very Good and Heavenly

    ReplyDelete
  10. Very Nice...wonderful....congraulations..BAhut Hi Achha Likha Aapne....!

    ReplyDelete
  11. Nirvair Singh Arshi6 December 2010 at 8:58 am

    very nice, touching and marvellous poem.

    ReplyDelete
  12. प्रेम जब अपने ऐश्‍वर्य की उच्‍चता को छूकर अध्‍यात्‍म की सीमा में प्रवेश करता है उस क्षण के भावों को सुन्‍दरता के उद्धृत करने के लिए अलका जी आप प्रशंसा की पात्र हैं । आपको बहुत बहुत बधाई हो अलका जी । आगे भी आपसे ऐसे ही उत्‍कृष्‍ठ रचनाओं की आश है .....बहुत बहुत शुभकामनाऍं ..........

    ReplyDelete
  13. your poem Isht Deo is heartly impressive ,ihave no words to explain it

    ReplyDelete