Sunday 10 October, 2010

बदलते-रिश्ते


थोड़ी देर में सब अपनी- अपनी सीटों पर बैठे- बैठे सुस्ताने लगे तो ठंडी हवा के झोंके से महिमा भी आँखें मीचते ही अतीत की यादों में खो गई . जब वह राजकीय महा विद्यालय में पढ़ती थी और उसके बी. ऐ. द्वितीय वर्ष का परिणाम आने वाला था . हर बार की तरह उसे इस बार भी पूरा विश्वास था कि वह कक्षा में प्रथम ही आएगी पर उसे तब बहुत अचरज हुआ जब परिणाम घोषित हुआ तो उसे पता लगा कि उसकी ही कक्षा का लड़का सारांश प्रथम आया है . सारांश पढने में तो होशियार था ही, देखने में भी कक्षा के अन्य लड़कों के मुकाबले में काफ़ी स्मार्ट था . जहां महिमा स्वभाव वश अपने में और अपनी किताबों तक ही सीमित रहती थी, वहाँ सारांश उतना ही चुलबुला और सब मे घुलने मिलने वाला लड़का था . महिमा शुरू से ही मन ही मन उसे पसंद करती थी और उसके प्रथम आने के बाद से तो वह उससे बात करने के लिए मन ही मन मौके की तलाश में रहती . कभी नोट्स लेने के बहाने या फिर किसी विषय पर जानकारी हासिल करने के लिए मौका ढूँढती रहती . पर सारांश तो एक भँवरे की तरह एक डाल से दूसरी डाल पर मंडराता रहता . यह सब देख कर वह मन ही मन हताश हो जाती . उसके मन में हीन भावना सी बैठ गई कि शायद वह इतनी आकर्षक नहीं है कि सारांश जैसा बहुर्मुखी लड़का उसकी तरफ आकर्षित हो . मन ही मन वह दुखी होती पर कभी भी अपने मन की बात किसी से कह नहीं पाती .


उधर कई दिनों से महिमा महसूस कर रही थी कि उसकी ही कक्षा का साधारण सा दिखने वाला लड़का अरुण जब देखो उसी की ओर देख रहा होता है .अरुण के व्यवहार में कुछ दिनों से वह अजीब सा बदलाव देख रही थी, महिमा इस कारण कुछ असहज सा महसूस कर रही थी . एक दिन वह जब कालेज से अपने घर की तरफ जा रही थी तो अरुण अचानक उसके सामने आ गया और इतनी सरलता से उसने अपने प्यार का इजहार उसके सामने कर दिया कि वह एक दम से झेंप सी गई और कुछ समझ न पाई .पर मन ही मन उसे उसकी स्पष्टवादिता और हिम्मत पर भी बड़ी हैरानी हुई . उसे अरुण की आँखों में अपने लिए वही प्यार दिखाई दे रहा था जो वह सारांश की आँखों में देखना चाहती थी .जब महिमा ने सारी बात अपनी सहेली मोनिका को बताई तो वह बड़ी परिपक्वता से बोली ,
" देखो महिमा, जीवन में एक बात याद रखना कि एक लड़की के लिए सबसे ख़ुशी की बात तब ही होती है जब वह उस इंसान से प्यार करे ओर उसकी कद्र करे जो उसे निस्वार्थ चाहता हो न कि उस इंसान के पीछे भागे जिसे वह खुद पसंद करती हो . ये प्यार नहीं होता बल्कि मात्र कच्ची उम्र का आकर्षण भर ही होता है . "


महिमा को भी अरुण की सादगी और भोलापन भाने लगा . जब उसके कालेज के अंतिम वर्ष की परीक्षाएं चल रही थी तो अरुण ने महिमा के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया.
जब महिमा ने अपने घर में अरुण के बारे में बताया तो जैसे आसमान गिर गया हो . उसकी माँ ने अरुण के बारे में सुनकर साफ़ इन्कार कर दिया और कहने लगी ,
" महिमा तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया जरा सा पढ़ लिख क्या ली हो ?जात बिरादरी किसी चीज का ध्यान ही नहीं है तुम्हे. उसके घर का वातावरण , रहन- सहन कुछ भी तो हम लोगो से मेल नहीं खाता है . जात बिरादरी में हमारी क्या इज्जत रहेगी "


जब महिमा ने अरुण को घर में हुए हंगामे के बारे में बताया तो अरुण का दिल टूट गया . उसकी दीवानगी तो किसी मजनू से कम ना थी .महिमा अरुण के बर्ताव को देखकर डर गई कि वह कहीं कोई अनर्थ न कर बैठे . उसे भी इतने दिनों में उसके साथ एक लगाव पैदा हो गया था इसलिए वह उसे किसी कीमत पर भी दुखी नहीं देख सकती थी . आखिरकार बहुत सारे हंगामो के बाद वे दोनों विवाह बंधन में बंध गए .वे दोनों एक दूसरे को पाकर बेहद खुश थे परन्तु जात- बिरादरी का भेद दोनों की आपसी ख़ुशी और शान्ति भंग करने पर तुला था .
महिमा जब भी अपने मायके तरफ के किसी प्रोग्राम में शामिल होने जाती तो उसे और उसके पति को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती और कोई न कोई व्यंग्य बाण सुनने को मिल जाता . महिमा मन ही मन खून के घूँट पी कर रह जाती . जात बिरादरी को लेकर हर मौके पर अरुण को किसी न किसी तरह बेइज्जत किया जाता तो वह बहुत आहत होती. जबकि अरुण इतना सहनशील था कि वह उसके बारे में सोचती कि वह किस मिट्टी का बना हुआ है जो सब कुछ सुनकर भी उस पर कोई असर नहीं होता है और चुप रहता है .


ससुराल में भी अरुण के माता- पिता को ये बात हर समय सताती रहती कि उनके बेटे ने अपनी पसंद की लड़की से शादी की है इस कारण उनकी नजरों में महिमा के रूप और गुणों की कोई कद्र न थी .


एक बार जब अरुण के छोटे भाई के विवाह के लिए लड़की देखने की बात हुई तो सब लोग महिमा के सामने ही बार- बार यही राग अलापते रहते कि इस बार राकेश के लिए तो वे अपने मन पसंद की और अपनी बिरादरी की लड़की ही ब्याह कर लाएँगे जो कि इस घर के माहौल के हिसाब से रच बस जाए . यह सब सुनकर महिमा के सीने पर सांप लौटने लगते पर वह फिर भी किसी से कुछ न कह पाती .

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महिमा अपने परिवार वालों के साथ बस में माँ वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए जा रही थी . महिमा के भाई अभिषेक के घर बेटी होने के पांच वर्षों बाद बेटा पैदा हुआ था . उसकी माँ तो पोता होने की ख़ुशी में जैसे बांवरी सी हो गई थी .सब सगे सम्बन्धियों , रिश्तेदारों मित्रों को मिठाई बांटते- बांटते बताती फिर रही थी ," पूरे तीस वर्षों बाद हमारे खानदान में चिराग पैदा हुआ है , बिलकुल अभिषेक जैसे नैन नक्श है ."
उसकी माँ तो बस सारा दिन अपने पोते को गोद में लेकर बैठी रहती . जब उसकी भाभी भी मुन्ने को दूध पिलाने के लिए पकड़ने लगती तो उसकी माँ हिदायत दिए बिना न रहती ,
" देख बहू ,मुन्ने को जरा आराम से गोद में उठाया करो और प्यार से उसे भर पेट दूध पीने दिया करो . घर के कामों की जल्दी मत किया करो आराम से होते रहेंगे. "


जब अभिषेक का बेटा छः महीने का हुआ तो उसके मुंडन के वास्ते उसकी माँ ने वैष्णो देवी जाने की अपनी मन्नत की बात की तो उसके भाई ने सब घर वालों के लिए एक मिनी बस का इंतजाम कर लिया था, वैसे भी वह घूमने फिरने का कुछ ज्यादा ही शौक़ीन था . अभिषेक ने एम. बी. ऐ. करने के बाद अपनी मेहनत और लगन से एक अच्छी खासी कंपनी चला ली थी . उसकी माँ अभिषेक की तरक्की देखकर फूली नहीं समाती थी . महिमा के पिता जी ने एक सरकारी मुलाजिम की तरह अपना जीवन बिताया था . इसलिए अभिषेक के कारण इतना ठाठ- बाट देखकर उनका सीना गर्व से चोडा हो जाता था . सब रिश्तेदार जो कल तक उसके माता- पिता को पास बिठाने में भी गुरेज करते थे वे भी अब किसी भी दिन त्यौहार में बार- बार उन्हें आने का न्यौता देते थे . .


मिनी बस में महिमा की दीदी का पूरा परिवार महिमा के पति अरुण और उसका बेटा अखिल साथ में थे . बस में भी महिमा की माँ किसी और को मुन्ने को पकड़ने ही नहीं दे रही थी . अगर कोई उसे खिलाना भी चाहता था तो कुछ ही देर में कोई न कोई बहाना बना कर उसे वापिस गोद में उठा लेती. इतनी उम्र हो जाने के बावजूद उसकी माँ में पोता होने के बाद अजीब सी ताकत आ गई थी . दीदी की बेटी रचिता तो बहुत खीज रही थी . वापिस आकर अपनी मम्मी से शिकायत करने लगी ,
" मम्मी, नानी तो मुन्ने के आने के बाद से पागल सी हो गई है, किसी और बच्चे की तरफ तो उनका ध्यान जाता ही नहीं है . मेरा मन मुन्ने को पकड़ने को हो रहा था तो मुझे डांट कर वापिस भगा दिया कि तुमसे चलती बस में झटका लगने से गिर जाएगा . अब देखो न मम्मी, मै कोई छोटी थोड़ा न हूँ कालेज में पड़ती हूँ "


महिमा के बेटे अखिल ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा ,
" हाँ मासी , नानी को पता नहीं क्या हो गया है किसी और से तो अब ढंग से बात ही नहीं करती, बड़ी घमंडी सी हो गई है "


महिमा की दीदी सुमन ने उसको डांटते हुए कहा , " चुप करो , नानी को ऐसे थोड़ा न बोलते हैं , अभी मुन्ना बहुत छोटा है इसलिए कह रही है . तुम लोग सब आराम से अपनी- अपनी सीटों पर बैठकर थोड़ी देर सो जाओ वर्ना इतना लम्बा सफ़र कैसे तय होगा "

तभी महिमा का बेटा अखिल मम्मी- मम्मी कहता हुआ आया , " मम्मी, आपको पापा कब से नीचे चाय पीने के लिए बुला रहे है, सब लोग कब के बस से नीचे उतर गए है और आप कहाँ खोई हुई हैं "




देखते- देखते जैसे- जैसे समय बीतता गया अभिषेक की कंपनी दिन- दूनी रात- चौगुनी उन्नति करती गई . महिमा को अब मायके का घर भी अपना सा न लगता क्योंकि वहाँ वक्त से सब कुछ तो बदल गया था . पिताजी के सरकारी नौकरी समय की सादगी भरी छाप मिट गई थी और सब चीजों पर पैसे की चमक- दमक की परत चढ़ गई थी . यहाँ तक कि महिमा के माता- पिता के बात करने का अंदाज भी बदल गया था . महिमा को अब अपने ही घर में इतने ऐशों- आराम होने के बावजूद घुटन महसूस होती पर वह माता- पिता की वजह से चुप हो जाती .
एक बार अभिषेक का अपने पार्टनर के साथ पैसों को लेकर झगड़ा इतना बढ गया कि पुलिस केस बन गया .उसके पार्टनर का कहना था कि उसने अभिषेक से कुछ पैसे बकाया लेने थे पर वह उसका हिसाब करना ही नहीं चाहता था . बात हाथा - पाई तक पहुँच गई तो सारी रात सबने जाग कर बिताई थी . सबकी सलाह थी कि बेवजह दुश्मनी मौल लेने से तो अच्छा था कि अभिषेक समय रहते ही पार्टनर का हिसाब चुकता कर देता तो बात इतनी न बढती . पर इतना सब होने के बावजूद महिमा की माँ पुत्र मोह के कारण अभिषेक का कसूर मानने की बजाय उसके पार्टनर को ही बुरा भला कहने लगी. उसकी माँ के इस तरह के व्यवहार के कारण ही शुरू से ही अभिषेक की हिम्मत बढती आई थी और वह भी महिमा की माँ की शह की वजह से कभी भी अपना कसूर नहीं मानता था .
उस पुलिस केस के कारण अभिषेक और उसकी पत्नी को कई बार कोर्ट- कचहरी के चक्कर काटने पड़े पर फिर भी केस सुलझने के कोई आसार न थे क्योंकि उसका पार्टनर तो पूरी तरह बदला लेने पर उतारू था . पर अभिषेक के दिमाग पर तो पैसे कमाने का भूत इस कदर सवार था कि उसका मानना था कि पैसा हो पास में तो वह किसी को भी खरीद सकता है इसलिए अभिषेक ने अब अपनी खुद की अलग कंपनी बना ली थी . उसका काम दिन पर दिन बढता जा रहा था . महिमा के भाई की तरक्की की बातें यहाँ तक कि उसके ससुराल तक पहुँच गई थी .सब लोग अभिषेक से बहुत प्रभावित थे . अब उसका रहन - सहन सब कुछ तो बदल गया था . महिमा के ससुराल में तो अभिषेक के मुकाबले का कोई नहीं था . आए दिन नई- नई गाड़ियां खरीदना अभिषेक का शौंक था .


महिमा के घर के पास ही उसकी सहेली अदिति रहती थी जो उसके ही घर पर अभिषेक से मिल चुकी थी . उसके कानो तक भी महिमा के भाई की शान- शौकत की बातें पहुँच गई थी . एक दिन तो बहुत अजीब बात हुई जब अदिति महिमा के पास अपनी नौकरी की सिफारिश करने पहुँच गई और कहने लगी ,
" महिमा , तुम्हे तो पता है कि मेरे पति का काम कुछ ख़ास चलता नहीं है इसलिए आज कल बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है . मै भी घर पर सारा दिन बैठे- बैठे बोर हो जाती हूँ यदि तुम अपने भाई को मेरी सिफारिश कर देती तो तुम्हारा बड़ा अहसान होता "
महिमा भी बचपन से पढने लिखने में होशियार थी और साथ ही साथ खुद्दार भी थी इसलिए वह किसी तरह भी अपने भाई से भी कोई अहसान नहीं लेना चाहती थी . उसने अदिति को टालते हुए कहा ,
" ठीक है तूँ कुछ दिन रुक, मै बात करके खुद ही तुझे बता दूँगी "


महिमा को उस समय बहुत हैरानी हुई जब उसे अपनी दूसरी सहेली से पता चला कि अदिति ने तो अभिषेक की कंपनी में जाना भी शुरू कर दिया है . महिमा को तो मानो काटो तो खून नहीं, उसे मन ही मन गुस्सा भी आ रहा था . कि न अभिषेक ने भी उससे कुछ बात करना मुनासिफ नहीं समझा . जब कई दिनों बाद महिमा की अभिषेक से बात हुई तो वह ऊपर से बड़े ही साधारण तरीके से कहने लगा ,
" महिमा क्या फर्क पड़ता है मुझे तो लोगो की जरुरत रहती ही है ,अगर अच्छा काम करेगी तो अच्छा ही है "
इस तरह कई दिन बीत जाने पर भी अदिति न कभी मुड कर उसके पास आई और महिमा के मन में इस तरह उसके लिए न चाहते हुए भी बड़ी कडवाहट भर गई कि लोग कितने मतलब खोर होते है .
धीरे- धीरे जैसे- जैसे समय बीतता गया महिमा के कानो में इधर- उधर से बातें पड़ने लगी कि जब से अदिति ने महिमा के भाई के यहाँ नौकरी की है उसके तो रंग- ढंग ही बदल गए है पहले कहाँ घर में खाने तक को न था और अब बहुत आधुनिक परिधान पहनने लगी है . मन ही मन महिमा को गुस्सा भी आता और हीन भावना की भी शिकार हो गई .
तब तो महिमा की बर्दाश्त ही खत्म हो गई जब उसके कानो में ये बात पड़ी कि अभिषेक अदिति को उसके घर तक छोड़ने आया है . आए दिन अदिति के बारे में कोई न कोई नई बात सुनने को मिल जाती थी कि महिमा के ये सब सुन- सुनकर कान पाक गए थे , वह इस बात से हर समय बेवजह ही परेशान रहने लगी .महिमा को पता था कि अभिषेक बहुत ही व्यवहारिक इंसान है, शादी भी उसने माता- पिता की पसंद से की थी और कभी किसी लड़की की तरफ आँख तक उठा कर नहीं देखता था . इस मामले में वह बहुत ही सख्त मिजाज का था . कई बार उसके मन में आया कि वह अभिषेक से इस बारे में बात करे पर उसे मालूम था कि वह उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं देगा क्योंकि उसके दिमाग पर तो आज कल पैसा चढ़ गया है . अभिषेक महिमा से तीन साल छोटा था फिर भी वह महिमा को मौका मिलने पर कहने में कसर नहीं छोड़ता था कि तुमने इतना पढ़ - लिख कर भी कौन सा तीर मार लिया और उसका मन ही मन मजाक उड़ाया करता था . जबकि बचपन से महिमा अभिषेक से हर लिहाज में यहाँ तक कि पढने में भी काफ़ी आगे थी .इस कारण वह उसे अपने सामने नाकामयाब ही समझता था .
बात उस समय बहुत बढ गई जब उसके बेटे अखिल ने आकर एक दिन रात के समय बताया ,
" मम्मी, मामा- मामी बच्चों के साथ अदिति आंटी के घर आए हुए है , देखो मम्मी ,हमारे घर तो अब कभी आते नहीं है "
महिमा से रहा नहीं गया कि आज अदिति उससे ज्यादा हो गई तो उसी समय उसने अभिषेक को फोन कर दिया , " अभिषेक तुम्हे अपनी इज्जत का भी बिलकुल ख्याल नहीं आया . अदिति को नौकरी पर रखने से पहले भी तुमने मुझे पूछना जरुरी नहीं समझा ,मै कब से तुम्हारे साथ बात करना चाह रही थी . अदिति और उसके पति को आस- पास के लोग पसंद नहीं करते है . उसका चाल- चलन भी कुछ ठीक नहीं है. तुम्हे लोग खामख्वाह उसके कारण बदनाम कर रहे है. मै तो ये सब सुनते- सुनते तंग आ गई हूँ .तुम भगवान् के वास्ते उससे दूर ही रहो "


बस इतनी बात सुननी क्या थी कि अभिषेक तो बहुत भड़क गया और वहाँ से उलटे पाँव घर लौट गया . महिमा की माँ को जब ये सब बातें अभिषेक ने बताई तो हमेशा की तरह माँ ने अभिषेक का साथ ही दिया और महिमा को कसूरवार मानते हुए उससे बात तक करना बंद कर दिया . इस बात को जब तीन- चार दिन बीत चुके थे तो अभिषेक काफ़ी बीमार हो गया जैसे कि पहले भी जब उसका पार्टनर के साथ झगड़ा हुआ था तब भी वह काफ़ी बीमार हो गया था कि उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था . बस तब क्या? अचानक से महिमा की मम्मी का फोन आया और महिमा को कहने लगी ,
" महिमा , देखो अभिषेक तुम्हारी बातों की वजह से काफ़ी परेशान था और आज वह इतना बीमार हो गया कि उसे डाक्टर ने अस्पताल में भर्ती कर लिया है . उसे यदि कुछ हो गया तो मै जीवन भर तुम्हे मॉफ नहीं करुँगी , इसलिए बेहतर होगा तुम अपनी गलती मान लो और अभिषेक से माफ़ी मांग लो "
अपनी माँ की बातें सुनकर महिमा के पैरों तले से जैसे जमीन निकल गई हो . क्या भारतीय समाज में लड़का ही सब होता है लड़की का कोई मोल नहीं ?. औरत को बार- बार अपने औरत होने का मोल क्यों चुकाना पड़ता है ,मायका हो चाहे ससुराल , पुरुष प्रधान समाज में औरत को ही क्यों अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है? . उसे रह- रहकर पुत्र मोह के कारण भरी सभा में द्रौपदी चीर हरण की बातें याद आने लगी . क्यों बार- बार औरत के सम्मान का चीर हरण होता है? .

14 comments:

  1. mam, this is fact people know it but they forget it for selfishness when they feel trouble they search relation.

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  2. na jane kyo pal me badal jate hai ye duniya ke badalte ristye

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  3. u r a great writer alka ji

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  4. Chandan Singh Bhati12 October 2010 at 2:48 am

    bahoot khoob,bahut sunder likha alkaji

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  5. अलका जी सचमुच दर्भाग्‍यपूर्ण स्थिति है हमारे समाज की जहॉं एक ओर हम नारी को देवी की तरह पूजते हैं वहीं दूसरी ओर हम नारी के साथ दोयम दर्जे का व्‍यवहार करते हैं । ये बात न सिर्फ नारी के लिए बल्कि सारे समाज के लिए हानिकारक है । इस स्थिति को सुधरना ही होगा । प्रभावशील रचना के लिए बधाई .......शुभकामनाऍं ............

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  6. It is wonderful story that should act as mirror to our modern society when we claim ourselves to live in the space age as very wise people.The ladies play a very important role in life of all human-beings right from birth till death as mother, spouse, friend ,daughter, niece and grand daughter who must be given proper place of love & respect all the times.I admire very meaningful thought of this versatile & genious writer Alka Ji who is known widely for her intellect,passion & wisdom who has so nicely penned down.

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  7. .

    Alka ji,

    In the story , i feel that Mahima took a wise decision by marrying Arun. But then why she expected her family members to take her side in all affairs.

    It's life. One should accept both the sides of a coin.

    In our society , major changes are happening. Women are more aware and capable now. They are educated and independent. They have all the rights to take decisions which they deem right.

    Let's be a proud woman !

    Thanks for the beautiful story.

    Regards,
    Divya

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  8. Harshendra Chakravarti14 October 2010 at 12:06 pm

    hello mam the story 'बदलते-रिश्ते' is 2 good and truth the story - good luck mam .

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  9. अच्छी कहानी ! सामाजिक ताने-बाने में पडी़ उलझनो का साक्षातकार करवाती यह कहानी नारी मन का प्रतिबिम्ब भी है तो नारी की जीवेऐषणा से भी रू-ब-रू करवाती है !फ़लक चाहे बडा़ है पर मुद्दा सटीक है ! बधाई !

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  10. Mai to bas yahi kahunga ki
    "Naari, tu keval shraddha hai"

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  11. Thank u Alka ji ....4 this nice story...written by u ...all d best ...:))

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  12. Thank u Alka ji ....4 this nice story...written by u ...all d best ...:))

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  13. I have gone through your Poems and stories that I liked them the most. You are a wonderful writer & poet of repute. Let me thank you for such good works that may take you to altar one day!

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