Tuesday, 6 July 2010

समर्पण




मीनाक्षी को सुचेता से मिले अभी एक वर्ष ही बीता होगा परन्तु इतने कम समय में भी उनमे घनिष्टता इतनी हो गई थी मानो बचपन से ही एक दूसरे को जानती हो . सुचेता पहली बार मीनाक्षी से किसी काम के सिलसिले में उसके घर पर मिलने आई थी. सुचेता को किसी से मालूम पड़ा था कि मीनाक्षी कई वर्षों से वहाँ पर राजनैतिक और सामाजिक तौर पर सक्रिय है इसलिए कोई भी काम होता तो वह मीनाक्षी के पास आ जाती थी .वैसे भी सुचेता अपने पति और बच्चों के साथ नई- नई उस जगह पर रहने आई थी इसलिए उसकी ख़ास किसी से ख़ास जान- पहचान नहीं थी . मीनाक्षी ने उसके कई छोटे- मोटे काम करवा कर दिए थे इसलिए सुचेता के मन में मीनाक्षी के लिए ख़ास जगह और सम्मान था .

धीरे- धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गई क्योंकि एक तो दोनों हमउम्र थी और घर की परिस्थितियाँ एक जैसी होने से वे एक दूसरे से दिल खोल कर बातें कर लेती थी . दोनों का मायके का माहौल काफी स्वच्छंद था , बिरादरी भी मेल खाती थी और ससुराल का माहौल अपेक्षाकृत काफी संकुचित था . दोनों की बातचीत का मुद्दा भी अक्सर घर की परेशानियों को लेकर ही होता था .यद्यपि मीनाक्षी अपने कार्य क्षेत्र में काफी व्यस्त रहती थी और किसी से ज्यादा बात नहीं कर पाती थी परन्तु पता नहीं ऐसा क्या था कि वह जब भी समय मिलता था अपने दिल की हर बात सुचेता से कर लेती थी.

मीनाक्षी की विचारधारा को सुनकर अक्सर सुचेता कहती थी ," मीनाक्षी , तुम बहुत ही गुणी होने के साथ साथ दूसरों की हमदर्द भी हो . तुम्हारे विचार इतने परिपक्व और स्वच्छंद है ."

मीनाक्षी उसकी बात का उत्तर देते हुए कहती थी ," क्या करूँ सुचेता मुझे अपनी उम्र के हिसाब से जीवन का गहरा अनुभव हो गया है और दुनिया को बहुत नजदीक से देखा है मैंने . शायद यही कारण है कि मै किसी पर विश्वास नहीं कर पाती और अपने दिल की बातें खुल कर नहीं कर पाती ."
.जब भी वे मिलती तो अक्सर आम औरतों की तरह ही अपने पतियों की खामियां निकालने लगती. मीनाक्षी सुचेता से अपने मन की बात बताते हुए कहने लगती , " कमल कभी भी मेरी भावनाओं को समझ नहीं पाए. मैंने उनसे कभी भी बड़ी- बड़ी खुशियों की उम्मीद नहीं की पर उन्होंने कभी भी कहने के वास्ते भी मुझे ऐसी कोई ख़ुशी नहीं दी जिसे मै अपने जीवन की मीठी याद के रूप में संझो सकूँ ."

सुचेता उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहती थी ," मीनाक्षी तुम सही कहती हो यहाँ भी यही हाल है मेरे पति भी ऐसे ही हैं बस एक मशीन से ज्यादा मुझे कुछ नहीं समझते जैसे हम इंसान न हो कर एक चलता फिरता पुर्जा हों ,और जैसे भावनाएं तो कोई मायने नहीं रखती .बस घर, बच्चों को संभालना और फिर बिस्तर पर भी हँसते- हँसते उनकी इच्छा पूरी करो और अपनी तकलीफ बताने का तो कोई हक़ ही नहीं है हमे .जब देखो मेरे मायके वालो पर कटाक्ष करते रहते हैं . कई बार तो मन इतना परेशान हो जाता है कि दिल करता है कि सब कुछ छोड़ कर कहीं चले जाऊं पर इन मासूम बच्चों का ध्यान करके सब्र का घूँट पीना पड़ता है ."

इस तरह दोनों सहेलियां जब भी समय होता तो एक दूसरे से मन की बातें कर अपने आप को हल्का महसूस करती और फिर से अपनी घर गृहस्थी को संभालने में व्यस्त हो जाती.

मगर वह दिन बाकी दिनों जैसा नहीं था आज मीनाक्षी का जन्मदिन था और सुचेता सुबह से ही मीनाक्षी को मिलकर उसके जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने के लिए व्याकुल थी .पर जब सुचेता ने मीनाक्षी को विश करने के लिए फोन किया तो उसे लगा कि मीनाक्षी पहले की तरह उसे मिलने को व्याकुल नहीं थी .सुचेता बीते कुछ दिनों से ही महसूस कर रही थी कि मीनाक्षी कुछ बदल सी गई है वह इस बात को समझ नहीं पा रही थी कि आखिर इस बदलाव की वजह क्या है .वैसे तो सुचेता जानती थी कि घर की परेशानियों की वजह से वह उलझी रहती है और उसके पति से भी उसकी आये दिन किसी न किसी बात को लेकर नोंक- झोंक चलती रहती है .उसे मालूम था कि उसके मन में अपने पति के लिए बिलकुल आत्मीयता शेष बची नहीं है . वह तो एक समझौता किए बैठी है .

उसकी नजरों में मीनाक्षी एक बहुत ही आदर्श संस्कारी और पढ़े लिखे होने के साथ ही आधुनिक विचारों वाली समझदार महिला थी . शहर में उसकी अच्छी खासी पहचान और रुतबा था .सब लोगों की नजरों में बहुत ही दृढ़ विचारों वाली और अनुशासन प्रिय थी . राजनैतिक और सामाजिक संगठन में उसका वर्चस्व साफ़ नजर आता था . वह हर कार्य क्रम में जहां तक हो सकता था अपने पति के साथ ही जाती थी शायद यह सामाजिक क्षेत्र में एक मजबूरी के तहत था अन्यथा लोग औरत पर कीचड़ उछालने में देर नहीं लगाते ..सुचेता ने उसके सूनेपन को कई बार महसूस किया था वह बाहर से खुद को जितना ही सशक्त और मजबूत दर्शाती थी अन्दर से वह उतनी हो खोखली नजर आती थी.


मीनाक्षी को मिलने को आतुर सुचेता जल्दी से तैयार हुई , उसने गिफ्ट पैक किया और उसके घर पहुँच गई . सुचेता ने उसके घर की काल बेल बजाई , मीनाक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला तो वह उसे शुभकामनाएँ देने के लिए उसके गले से लग गई जैसे कि पता नहीं कितने बरसो बाद मिल रही हो . सुचेता ने उसे उपहार दिया तो मीनाक्षी ने कहा , " अरे ! इसकी क्या जरूरत थी तुम्हारी शुभकामनाएँ ही बहुत है मेरे लिए "

दोनों सहेलियां हमेशा की तरह शयनकक्ष में आकर आराम से बैठ गई . आज कुछ अलग ही लग रही थी मीनाक्षी . हल्के नीले रंग के सलवार सूट में उसका गोरा बदन कुछ ज्यादा ही खिल रहा था . सुचेता से कहे बिना रहा नहीं गया ,
" अरे क्या बात ? आज तो मैडम कुछ ज्यादा ही निखरी नजर आ रही है , लगता है आज सुबह ही तुम्हे तुम्हारे जन्मदिन का उपहार भैया से मिल गया है "
मीनाक्षी ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और ना ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की . फिर दोनों इधर- उधर की बातों में व्यस्त हो गई . कुछ देर बाद मीनाक्षी ने सुचेता से पूछा , ' अच्छा ये बता तूँ क्या लेगी ? बातें तो बाद में भी होती रहेगी . चाय बनाऊं या काफ़ी लेना पसंद करोगी . "
" चल ऐसे कर चाय ही बना ले . मै भी आती हूँ तेरी मदद करने '" यह कहकर वह भी रसोईघर में उसके पीछे- पीछे आ गई
मीनाक्षी ने चाय का पानी रख दिया और एक प्लेट में गाजर का हलवा डालने लगी और सुचेता को देते हुए बोली ," ये ले मुँह मीठा कर , देख तो कैसा बना है मैंने अपने हाथों से बनाया है"

एक उचित मौका पाकर सुचेता मीनाक्षी से पूछने लगी ," एक बात कहूँ अगर बुरा न मानोगी . पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लगता है कि कोई न कोई ख़ास बात है जो तुम मुझसे छिपा रही हो . हो न हो वह तुम्हारे दिल पर बोझ बनकर तुम्हे दुखी कर रही है . क्या वह बात तुम मुझे नहीं बताओगी? "
मीनाक्षी ने अपने चेहरे की भाव भंगिमा बदलते हुए अपने अंतर्मन के दुःख को टालने की चेष्टा की .

सुचेता ने मीनाक्षी के चेहरे को अच्छी तरह से पढ़ लिया था . हो न हो मीनाक्षी उससे कोई न कोई बात अवश्य छिपा रही है और भीतर ही भीतर वह किसी अंतर्द्वंद्व से जूझ रही है .वह कुछ कहना तो जरूर चाहती है मगर वह शब्द उसके होंठों पर आकर रुक जाते है .

.सुचेता माहौल को कुछ हल्का करने के लिए मजाक करते हुए पूछने लगी ," आज कमल भैया ने तोहफे में तुम्हे क्या दिया है "
इस बात का मीनाक्षी क्या उत्तर देती फिर अनमने भाव से कहने लगी ,
" सुचेता तुम अच्छी तरह से तो इनके स्वभाव को जानती हो , तोहफा तो क्या उन्होंने तो अच्छे से मुझे विश भी नहीं किया . खैर तूँ छोड़ इन बातों को , अब तो मैंने किसी तरह की उम्मीद करना भी छोड़ दिया है . मै तो कई वर्षो से अपना जन्मदिन भी नहीं मनाती हूँ इसीलिए " .

" अरे वाह! आज तो चमत्कार हो गया ,इतना स्वादिष्ट हलवा है जैसे कि तुमने अपनी सारी मिठास इसी में घोल दी हो . आज क्या सूझी हमारी प्यारी सहेली को हलवा बनाने की . कोई ख़ास मेहमान आ रहा है क्या ?"

चाय तैयार होते ही मीनाक्षी ने एक ट्रे में कप रखे और साथ में कुछ नमकीन भी डाल ली और फिर से दोनों शयन कक्ष में आकर बैठ गई .
सुचेता ने बातों के सिलसिले को जारी रखते हुए ,
" चल ऐसा करते हैं , हम कल ही दोनों बाजार चलते है, तुम भी अपने मन पसंद की कोई चीज ले लेना और मुझे भी कुछ काम है . इस बहाने थोड़ा घूमना- फिरना भी हो जाएगा .वैसे भी इन आदमी लोगो के साथ खरीददारी करने में कहाँ मजा आता है ऐसे लगता है कि जैसे कोई सजा काटने आए हो "

तुम अपना मन उदास मत करो . तुम्हे कौन- सा कोई कमी है किसी चीज की" .
सुचेता की धीरज बंधाने वाली बातें सुनकर जैसे कि मीनाक्षी के सब्र का बाँध टूट गया हो . वह काफी भावुक होते हुए कहने लगी , " तुम ठीक कहती हो सुचेता , पर प्यार से दिया हुआ एक फूल भी बहुत होता है . जिस इंसान के लिए हम अपना सब कुछ कुर्बान कर देते हैं उससे उम्मीद तो बनी ही रहती है . उसके द्वारा कहे दो मीठे बोल भी अमृत से कम नहीं होते ".

मीनाक्षी की शादी कमल से हुए तकरीबन १२ साल का समय बीत गया था और उसके १० वर्ष का बेटा भी था .

वह आगे कहने लगी ,
" तुझे तो पता है कि मेरा कार्य क्षेत्र कैसा है आए दिन किस तरह के लोगो से मेरा पाला पड़ता है , और ऐसे लोगो से मै कभी भी अपने मन की बात करने की सोच भी नहीं सकती . ये लोग तो दूसरों की मजबूरी का फायदा लेना जानते है बस . घर की और बाहर की जिम्मेवारियां निभाते- निभाते मै भीतर ही भीतर बुरी तरह उकता गई हूँ . एक खालीपन हर समय कचोटता रहता है .आज तक जो भी इंसान संपर्क में आये सब अपना स्वार्थ पूरा करते हुए नजर आये . उनकी गन्दी नजरें हर समय मेरे जिस्म को घूरती हुई नजर आती है .किसी के बारे में कोई नहीं सोचता . हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है . हर कोई बाहर की खूबसूरती को देखता है मन में क्या है कोई नहीं जानना चाहता? .दुनिया के अजीबोगरीब रंग- ढंग देख कर मेरे सामान्य व्यवहार में भी काफी बदलाव आता जा रहा था पर ये सारी बातें मै किसे बताती . बस अन्दर ही अन्दर सब बातें दबाती गई " .

सुचेता बड़े ही ध्यान से सारी बातें सुन रही थी .उसे एक ही बात रह- रह कर परेशान कर रही थी कि आखिर मीनाक्षी में इतना बदलाव किस कारण से है. आज कल वह कुछ खोई - खोई सी रहती है .न ज्यादा किसी से बात करती है न ही पहले की तरह अपने सास- ससुर की शिकायतें करती हैं.
सुचेता से रहा नहीं गया तो पूछ ही बैठी ,
" आज कल मैडम कहाँ खोई रहती है , किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती न ही कहीं आती- जाती हो . मै ही हर बार तुम्हारे घर आती हूँ . तुम भी कभी अपने कदम मेरे घर पर डाला करो . मुझे कई पहचान वाले लोग तुम्हारे बारे में पूछ चुके हैं कि क्या बात आज कल तुम्हारी सहेली नजर ही नहीं आती ? "
मीनाक्षी क्या उत्तर देती ,
" कुछ नहीं सुचेता बस आज कल कुछ लिखने का काम शुरू किया हुआ है और जरा कुछ किताबें पढने में व्यस्त थी "

सुचेता मन ही मन जानती थी कि मीनाक्षी में काफी हुनर है और उसे बाकी औरतों की तरह इधर- उधर खड़े हो कर गप्पे मारना ,चुगलियाँ करना पसंद नहीं है .वह हमेशा ही किसी न किसी सृजन कार्य में व्यस्त रहती थी .पिछले कुछ समय से वह सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में भी पहले की तरह सक्रिय नहीं थी . आज कल उसका ज्यादा समय घर के और बच्चों के काम काज के इलावा तरह- तरह की किताबें पढने और कंप्यूटर पर ही बीतता था .उसे वैसे भी बेवजह बात करना पसंद नहीं था .वह बातों में कम और कर्म करने में ज्यादा विश्वास करती थी और कुछ न कुछ करने में खुद को व्यस्त रखती थी.
मीनाक्षी से कोई प्रत्युत्तर न पाकर सुचेता ने फिर से पूछा ,
" तुमने ये लिखने- पढने का नया शौंक कहाँ से पाल लिया है , उसके अलावा तुम पहले से भी कम बोलती हो .ऐसा लगता है हर समय किसी तरह के विचारों में खोई रहती हो .एक बात और कहूँ कि तुम्हारे में एक अजीब सा बदलाव आ गया है . पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी हो . चेहरा तो देखो मानो सुर्ख हो गया है . अजीब सी रौनक और चमक चेहरे पर आ गई है . मुझे भी इसका राज बताओ , कि आखिर बात क्या है ?" .
मीनाक्षी सोच रही थी कि सुचेता तो आज उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गई है. अब वह उससे झूठ किस तरह बोले .शायद किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो . मन ही मन वह खुद भी बेचैन थी किसी से अपने मन की बातें करने के लिए, पर कशमकश में थी कि किस तरह अपने दिल का हाल सुनाये .क्या जो उस पर बीत रही है वह सही है या गलत? . सही- गलत के इसी उधेड़- बुन में तो वह कई दिनों से झूल रही थी.

कहीं यह उसका पागलपन तो नहीं ,मगर दुनिया जो भी सोचे जो भी समझे उसे ये नया अहसास बहुत ही सुखदायक लग रहा था .उस अहसास के आगे रूपया पैसा रुतबा दुनियादारी सब फीके लग रहे थे .
उसे लग रहा था मानो जिस सुख की तलाश में वह इतने वर्षों से भटक रही थी वह भगवान् शिव की कृपा से उसकी झोली में आ गिरा हो .काफी कोशिश करके भी वह अपने मन की बात को जुबान तक नहीं ला पा रही थी . सुचेता से उसकी चुप्पी बर्दाश्त नहीं हो रही थी . वह ये तो देख रही थी कि मीनाक्षी कुछ कहना तो चाहती है मगर कह नहीं पा रही है . उसकी झिझक देख कर सुचेता से रहा नहीं गया ,
" देखो मीनाक्षी, अगर तुम नहीं बताना चाहती तो तुम्हारी मर्जी . लगता है तुम मुझ पर अभी भी पूरी तरह भरोसा नहीं करती हो . मै भी तो अपने दिल की हर बात सबसे पहले तुम्हे ही तो बताती हूँ . "

सुचेता की ये बात सुनकर मीनाक्षी को आखिरकार अपनी जुबान खोलनी ही पड़ी ,
" सुचेता , कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा. एक इंसान है जो किसी देवदूत से कम नहीं है . मै उस इंसान से कभी मिली नहीं हूँ . बस इंटरनेट के द्वारा बातचीत शुरू हुई थी और अब फोन पर भी अक्सर बात होती रहती है . मुझे नहीं पता क्या सही है क्या गलत है ? बस इतना जानती हूँ वह जो कोई भी है दिल का सबसे अच्छा इंसान है . मैंने इतनी दुनिया देखी है पर इस तरह का देवता स्वरुप इंसान नहीं देखा . वह मेरे दर्द को .मेरी भावनाओं को समझता है .मेरे मन के खालीपन को जानता है .वह हर समय मुझे अपने परिवार में खुश देखना चाहता है . मुझे मुस्कुराता देखने के लिए उसकी तड़प को मैंने महसूस किया है . पर हमारा समाज अभी भी शादी के बाद औरत के मन में किसी परपुरुष के ख्याल को आने को भी पाप समझता है."
यह कहते हुए मीनाक्षी ने एक गहरी सांस भरी और चुप सी हो गई . सुचेता ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा , " हाँ, मीनाक्षी तुम्हारी बात सही है पर मै ये मानती हूँ यदि किसी औरत को अपने पति से वो प्यार ,वो इज्जत नहीं मिलती तो उसे क्या करना चाहिए? . क्या उसे हर समय रो- धोकर अपना जीवन बिताना चाहिए? . तब कौन सा समाज आगे आकर किसी का दर्द बांटता है . क्या सच्चा प्रेम करना कोई पाप है? क्या मीरा ने भगवान् कृष्ण से सच्चा प्रेम नहीं किया था ? मेरे हिसाब से प्रेम करने का कोई निर्धारित समय नहीं हो सकता . "

" सुचेता , उसका मन भगवान् की किसी मूर्ति की तरह ही पवित्र है . हम दोनों की आत्माएं एक है . वह मेरे साथ न होकर भी हर समय मेरे पास होता है . वह तो निष्काम प्रेम की प्रतिमूर्ति है .............."

यह कहते ही उसकी आँखों में से भावुकता वश आंसू बहने लगे और छलकते आँसुओं से भी उसने कहना जारी रखा ,

" सच बात बताऊँ सुचेता , मैंने इतनी बातें तो आज तक कभी खुद के साथ भी नहीं की. मेरे जीवन की कोई भी बात उससे छुपी नहीं है . उसने मुझ पर पता नहीं क्या जादू कर दिया है उसकी बातों से मै सम्मोहित हो जाती हूँ .बेशक मै यदि उससे जीवन में कभी मिल भी पाऊं या नहीं पर उसका गम नहीं है .उसके मेरे जीवन में आने से मेरा अधूरापन और सूनापन भर गया है .मेरी जरा सी भी तकलीफ उससे बर्दाश्त नहीं होती . उसकी बातों में अजीब सा अपनापन, अजीब सी कशिश है जितनी किसी के साथ रहने में भी न हो . कभी- कभी तो मुझे महसूस होता है कि वह मेरे आस- पास ही है .वह कुछ ना होकर भी मेरा सब कुछ है .जीवन के इस मौड़ पर वह कभी एक गुरु की तरह मुझे आध्यात्मिक ज्ञान देता है, तो कभी एक माता- पिता की तरह घर गृहस्थी के फर्ज निभाने की सीख देता है , तो कभी एक दोस्त की तरह मेरे दर्द को बांटता है , तो कभी भाई- बहनों की तरह मेरे साथ हँसता- मुस्कुराता है ,और कभी एक प्रेमी की तरह मुझ पर अपना सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो जाता है " .

" अब तूँ ही बता क्या आज कल की दुनिया में ऐसा कोई इंसान मिल सकता है? . मुझे तो लगता है वह किसी दूसरी दुनिया से आया हुआ कोई मसीहा है जिसे भगवान् ने मेरे लिए भेजा है . कभी - कभी लगता है कि मै कोई सपना तो नहीं देख रही , कहीं यह मेरी मात्र कल्पना तो नहीं ? ऐसा लगता है कोई पिछले जन्म का संबंध है जो मुझे उसकी तरफ खींच रहा है . एक इच्छा जरूर है कि भगवान् जीवन में यदि मिलने का एक मौका दे तो खुद को उनके चरणों में समर्पित कर दूँ ."

तभी मीनाक्षी को दरवाजे पर घंटी की आवाज सुनाई दी और उसने जब हड़बड़ी में उठकर दरवाजा खोला तो देखा उसकी सहेली सुचेता हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ी है . उसने उसे जन्मदिन की मुबारक दी तो मीनाक्षी कहने लगी , " अरे मै तो कब से तुम्हारा इन्तजार कर रही थी और टी. वी. देखते- देखते मेरी कब आँख लग गई पता ही नहीं चला . चल अन्दर चल तेरे साथ बहुत सी बातें करनी है "

32 comments:

  1. aap ki kahaani bahut achchhi hai.... par har baar 'samarpan' pe hi kyu khatam hoti hai.. aurat ki kahaaani?

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  2. Biresh Kumar Tyagi7 July 2010 at 1:02 am

    very beautiful notes. Aap ne bahut hi sunder likha hai . Aap ek mahan lekhika hai ....ati uttam.

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  3. Narendra Kishore Vyas7 July 2010 at 1:03 am

    बहुत अच्छी बहुत सुंदर मित्रता के यही मायने हैं

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  4. उत्कृष्ट रचना - बहुत बहुत बधाई

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  5. that was a nice note "Samarpan"
    It has so many aspects of today working lady in it that I have to admire the writer.
    Whoever wrote it has gone through all this and have practically suffered like Minakshi.
    I am sorry for the character and hope that society will start to understand the feelings of a woman as as soon as possible.
    Regards.

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  6. har mahan purush ke piche ek aurat thi esliye o mahan bane !

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  7. Bhalchandra Bawsay11 July 2010 at 3:10 am

    dear alka i read the first story and liked it very much . congrats u r a good writer.

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  8. Raj Tuteja
    alka ji...aise log aaj bhi is duniya mein hai...mere jaise pagal log..jo dusro ki help karna chahte hai...maine bhi aisa kiya...par aksar log apko hi ghalat samajhane lagte hai ki koi apko bina matlab ke kyon help kar raha hai....bahut kum log bina kisi swarth ke aisa kar pate hai...chahe unhe badle mein badnami mile ya kuchh aur par woh chalte ... See Morejate hai apni dhun mein....bina ruke...bina thake....thoda sa swarath bhi hota hai ki kisi ko khushiyan dekar shayad unhe bhi khushi mil jaye....apki kahani sirf kahani nahi..ek soch hai....ek disha hai.....ek writer hi samajh sakta hai ki kahania kaise bana karti hai... thanx sharing d story

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  9. AApki Likhi Khani Hmesha Bhav or samajikta se Judi milti hai ,Eak or Achhi kriti ke liye Mubark

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  10. g00d aap accha likhti hai

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  11. ek behtrin lelkh jisme jazbato aur bhavnao se behtar tarike se goontha hai,bemisal,alkaji

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  12. alka ji aap ke khani ka bara ma jetna bolu utna he kam ha

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  13. बड़ी अपनी सी लगी ये कहानी।।.लगा एक एक शब्द जो मन में चल रहा था सामने पढ़ रही थी।.आपको जानती तो नहीं मगर दिल ने कहा आप पर यकीन किया जा सकता है .

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  14. मानवीय संबंधों की दास्तान ...अच्छी रचना है..कुछ सचेत करती हुई तथा सीख देती हुई ...

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  15. kahani ko Aage likhiye n. itni jaldi mat sametiye. kash uska vah hamdard uska husband ho.

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  16. very nice story...

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  17. Very good.....it's nice story...
    aaj ke parivesh mein ye aam baat hai kintu aapne ek naari hokar ise jis aasani se darshaya hai....prashanshneey hai...
    sach mein prem aisa hi pavitra hota hai...kintu mujhe lagta hai meenaxi ko sahanubhuti ka hi ek roop prem samajh me aaya...main galat ho sakta hun......but you've done a good job mam...i am waiting for the next one....thanks a lot

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  18. It is a good presentation with meaningful thoughts that Alka Saini has tried to project in this story encircling round a lady who happens to be our mother, friend, partner, sister, relations and spouse. One must bear in mind that none has come down to live permanently on this worldly earth. All of us have to depart to heavenly abode either on one day or the other that are unknown to us squarely depending on how much good deeds we have carried out during our life-span. Let us make full use of our life by conducting ourselves to the service of mankind which is the service to God and follow ethical and moral values in our life! It is good deeds that matter much in our life .Let us strive hard to serve mankind as whole for cause of humanity to seek godly bliss! Nevertheless to mention that ladies play a very important part in our lives and are known for their passion & wisdom. Let me commend Alka Saini for her such a brilliant creative ideas that she had penned down in the shape of this marvelous & heart touching story! I wish her all success and am sure that her creative ideas will be liked by all of us.

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  19. Your story depicts the current situaton of Indian Women. Accoeding to me, this situation will only change when women are given complete freedom and desired respect in the society.

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  20. alka ji aap ki is prati ko padnay kay baad bada hi accha sa ahasaas horah ha ki aap nay ak naari kay kai ansuay pahluo ko kafi kubsurti say utrnay ki kosis ki ha.ham aap ko is kosis ki tahay dil say danyvadd krtyay hay...pooja

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  21. wow aapka topic bahot hi achcha hai. really heart touching topic hai. I am a professor in B.Ed college. so sure mai apne lectur me is baat ko aour aapki kahani SAMARPAN ki baat jarur kahunga. and thanks to add ms as your friends list.

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  22. कुछ रिश्ते कितने अजीब होते हैं ना.....बस इसी उलझन के ताने बने में व्यक्त ये कहानी रोचक लगी.....

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  23. bahut badhiya abhivyakti.Naaree ke antarman ko koi kya samjhega .badhiya shabdik chitran...badhai.

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  24. achhi kahani! bahasha par pakad,

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  25. अभिन्न22 July 2010 at 3:46 pm

    ahan jhute pad jate hai zamaane ke aam rishte,
    sachcha saath nibha jate hai kuch anaam rishte.
    ,,,,,rishte bhi kya khoob hote hai aapki kahani ne bahut hi sundarta se anaam rishton ki mahata ka bakhaan kiya hai.lagta hai kisi ki sachchi kahani hai
    congrats

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  26. नारी के अन्तर्मन को उजागर करने वाली यह कहानी उस निस्वार्थ प्रेम को उजागर कराती है जिसमे दैहिक वासनाओं का कोई स्थान नहीं ,केवल आत्मिक प्रेम तथा मानसिक प्रेम का पवित्र तानाबाना बुना हुआ हैं . नारी के मनोविज्ञान को सूक्ष्मता से पढ़कर निडरता के साथ प्रस्तुत करने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई

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  27. अलका जी,
    मुझे आपकी कहानी ठीक लगी पर उसका अंत सही नही लगा...!!! मुझे उम्मीद थी कि आप अंत में ऐसे रिश्तो की सच्चाई बयान करे गी...!!! पर आपने तो ऐसे भटकन भरे रिश्ते को महिमामंडित कर दिया !!! बुरा मत मानिये अलका जी पर सच तो यही है कि आज नेट पर मिलने वाले ऐसे लोग हजारो है पर आप जानती है ये सब औरत को बेवकूफ बनाने का बिलकुल नया और advanced तरीका है...??? और कमाल तो ये है कि औरत बेवकूफ बन भी रही है....!!! पुरुष के चेहरे पर शराफत का नक़ाब सामने तो फिर भी दिख जाता है....पर चैट पर या फोन पर...??? आप को नही लगता आवाज के पीछे उसे छिपाना कितना आसान है..??? सोच कर देखिये !!!

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  28. गिरीश बिल्लोरे2 August 2010 at 10:59 am

    इस ब्लाग पर पहली बार आया वाह ही कह पाया
    आभार फ़ेसबुक के ज़रिये बुलावा भेजने का
    रहा सवाल अल्का जी की कहानी तो
    बस मैच्योर व्यक्तित्व कभी बेवकूफ़ बन नहीं सकता डाक्टर प्रिया.
    ऐसे लोग जिनका लक्ष्य नेट पर महिलाऒं को मूर्ख बनाना है वे एक दो बार में एक्सपोज़ हो ही जाते हैं

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  29. कहानी अच्छी लगी ...हाँ ...कहानी के अंत की इस पंक्ति पर थोडा अटकी हूँ ...

    "एक इच्छा जरूर है कि भगवान् जीवन में यदि मिलने का एक मौका दे तो खुद को उनके चरणों में समर्पित कर दूँ ."
    निष्काम प्रेम काम की ओर बढ़ता दिख रहा है ... सिर्फ दिल नहीं , दिमाग से भी काम लेना चाहिए ...!
    दूर से दिखने वाला सब लुभावना ही हो यह आवश्यक नहीं ...
    वहीँ बुरा ही हो , यह भी जरुरी नहीं ...!

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  30. No doubt everybody have desire to live at his/her own,but in practicall if Minakshi goes straightway to the stranger, it will painfull for all like her children, husband, parents and even for herself. So let the minakshi should live her life secretaly and patiently only upto that extent where her sould says right.
    Rest Nice thought you have, thatswhy i have already said that I need experienced and elder person to learn

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  31. M.M. THAPAR, JALANDHAR2 December 2010 at 4:53 pm

    Dear Alka Ji, Your story on social issue of our society has been found very interesting, fantastic and heart touching. There is also important ingredient of excitement as well. Title and climax are also strictly matching with the body. I am a regular reader since long and like such types of healthy reading material on social topics of life. I wish the writer a bright future in the field of literature.

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