Monday, 7 June 2010

असली पूँजी



असली पूँजी

जिज्ञासा ने जैसे ही अपनी बेटी यक्षिता के साथ अपने पुराने कालेज के गेट मे प्रवेश किया,उसे लगने लगा मानो यह कल ही की बात हो जब उसने हायर स्कैनडरी की परीक्षा पास करके उस कालेज मे दाखिला लिया था, भले ही इस बात को बीते हुए बीस साल से ज्यादा का समय पार हो चुका था. अपने उस कालेज मे उसे काफी बदलाव नजर आ रहा था . पार्किंग का एरिया जहां पहले इक्का- दुक्का गाड़ियां और कुछएक स्कूटर ही नजर आते थे वहाँ अब सारी जगह गाड़ियों और अन्य वाहनों से भरी पड़ी थी . एक दो नई बिल्डिंग्स भी नजर आ रही थी हाँ जो नहीं बदला था वो थे वहाँ के फूल पत्ते , अभी भी वहाँ कई पुराने गार्ड़न उसी तरह दिखाई दे रहे थे .एक गार्ड़न को देखकर जिज्ञासा को अपने अतीत की याद आने लगी, वह यक्षिता से कहने लगी बेटी, यह वही मेरा बोटैनिकल गार्ड़न है जहां हम तरह- तरह की वनस्पतियों का अध्ययन करते थे, अभी भी देखो न, कितना अच्छा दिख रहा है. आस पास देखते - देखते वह प्रिंसिपल के चैम्बर तक पहुँच गई .
प्रिंसिपल के कक्ष में उसे काफी बदलाव नजर आ रहा था , सब कुछ आधुनिक तरीके से बना हुआ लग रहा था . मन ही मन जिज्ञासा सोच रही थी कि बीस वर्ष का समय कोई कम तो नहीं होता , लगभग दो दशक बीत चुके थे . पर अपनी घर गृहस्थी में वह इतनी व्यस्त हो गई थी कि उसे इतने लम्बे समय के बीतने का पता ही नहीं चला , परन्तु आज सब पुरानी यादें ताज़ा हो रही थी और वह खुद की तुलना पहले वाली शौख , चंचल और तीव्र बुद्धि वाली जिज्ञासा से कर रही थी जिसके आस- पास हर समय उसकी आकर्षक छबि और होशियार होने की वजह से सहेलियों का जमघट लगा रहता था. सब कुछ होते हुए भी उसके मन के किसी एक कोने में एक कमी सी खलती रहती थी कि क्या घर परिवार और बच्चों की परवरिश करने के लिए ही उसने इतनी पढाई लिखाई की थी. बेशक इतने सालों में गंभीरता से उसे यह सब सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली और दिवाकर के बेपनाह प्यार ने उसे कोई कमी आने भी नहीं दी थी . दिवाकर तो हर समय उसके रूप और गुणों की तारीफ़ एक दीवाने की तरह करते नहीं थकते थे.
दिवाकर एक राष्ट्रीय कंपनी में बतौर इंजीनियर के काम करते थे बावजूद उसने कभी किसी तरह की कोई कमी जिज्ञासा को महसूस होने नहीं दी थी .कभी- कभी तो वह जिज्ञासा की तारीफ़ में कविता कहने लगता था . आज सुबह की ही बात थी जब जिज्ञासा कालेज आने के लिए तैयार हो रही थी और उसने गहरे आसमानी रंग की साड़ी पहनी तो दिवाकर उसे तैयार होते देख पास आकर बैठ गया और उसे बड़े प्यार से निहारने लगा तो जिज्ञासा नई नवेली दुल्हन की तरह शरमा गई और बोली ,
" आप तो मुझे इस तरह देख रहे है जैसे कि कल ही हमारी शादी हुई हो . पूरे १८ साल बीत गए हैं हमारी शादी को "
ऊपर से दिवाकर ने बड़े ही रोमांटिक अंदाज में कहा था ,
" अरे , मुझे तो मेरी जान आज भी नई नवेली दुल्हन की तरह लगती है और जी चाहता है कि तुम्हे इसी तरह हर दम देखता रहूँ " .
यह कहकर दिवाकर ने उसे अपनी बाहों में भर लिया था . ऐसा सोचते ही जिज्ञासा को अजीब सी सिरहन होने लगी .
इस तरह जिज्ञासा भी दिवाकर के प्यार में इस कदर बहती चली गई कि उसे कभी अतीत की तरफ मुड कर देखने की फुर्सत ही नहीं मिली.
खुद को दिवाकर बहुत खुशकिस्मत मानते थे कि जिज्ञासा जैसी सर्वगुण संपन्न धर्मपत्नी उसे मिली .जिसकी उसके ना सिर्फ सगे- सम्बन्धी बल्कि उसके दोस्त मित्र भी तारीफ़ करते नहीं थकते थे और उससे ईर्ष्या भी करते थे . एक बार जब दिवाकर काफी बीमार हो गए थे तो उनके दोस्त रोहित ने तो यहाँ तक कहा था ,
"भाभी जी आप बिलकुल चिंता मत करे दिवाकर बहुत जल्द ठीक हो जाएगा . अरे, जब आपकी आँखों में इतना विश्वास और इतनी चमक दिखाई देती है और जिस तरह आप इसकी तन- मन से इतनी सेवा कर रही है तो इसे जल्दी ही आपकी खातिर ठीक होना ही पड़ेगा "
उसका ध्यान अतीत की यादों से तब भंग हुआ जब उसकी बेटी ने कहा,
" मम्मी पियन कह रहा है कि अभी तो प्रिंसिपल साहिबा व्यस्त है, अन्दर सभी लेक्चरर्स के साथ मीटिंग चल रही है, मीटिंग ख़त्म होते ही वह हमे खबर कर देगा तब तक हम उस गार्डन मे बैठकर आराम से इन्तजार करते हैं ।
," अच्छा, ठीक है, " जिज्ञासा ने उत्तर दिया, फिर वह पियन से पूछने लगी," अच्छा जरा ये तो बताओ कि अभी प्रिंसिपल कौन है" ,
“ अरे क्या आप नही जानती है, इसी शहर की जानी मानी हस्ती अनीता खुराना ही तो कालेज की प्रिंसिपल हैं और सुना है वह किसी जमाने में इसी कालेज में ही पड़ा करती थी . मैडम क्या आपने पढ़ा नहीं ,इधर देखिये , इस नेम प्लेट पर उनका नाम भी तो लिखा हुआ है"
अनीता खुराना का नाम उसे कुछ जाना पहचाना सा लगा और वह अपने दिमाग पर जोर डालने लगी तो अपने अतीत की यादों मे खो गई. कहीं यह वही अनिता खुराना तो नही। है, जो कभी उसकी सबसे नजदीकी सहेली हुआ करती थी .उस समय उसके साथ- साथ अनीता का नाम भी वरीयता सूचि में आया था . वह भी काफी होशियार व होनहार लडकी थी और हर समय कुछ ना कुछ नया सीखने की ललक ने उसे जिज्ञासा के काफी नजदीक कर दिया था. धीरे- धीरे कर उनकी यह नजदीकी घनिष्ठता में बदलती गई. उसकी बाकी सहेलियाँ भी जिज्ञासा को ¨ हमेशा घेरे रहती थी और वह भी हर समय उन सभी की समस्याओं ¨ का समाधान करने को तत्पर रहती थी भले ही कोई भी विषय कितना भी कठिन होता था फिर भी जिज्ञासा उनका उत्तर खोजने मे उत्सुकता दिखाती थी .कभी-कभी तो वह अपने अध्यापक¨ से भी इस बारे मे मदद लेती थी.

अनीता का तो ¨ कहना ही क्या था वह तो घर पर जिज्ञासा के ना सिर्फ सारे क्लास नोट्स की कापी करवाकर अपने साथ ले जाती थी
बल्कि उसकी परीक्षाओं की हर उत्तर तालिकाएँ भी अपने साथ घर ले जाकर ध्यान से देखती थी .यह सब देखकर जिज्ञासा मन ही मन फूली नही समाती थी उसे अपने आप पर गर्व महसूस होने लगता था अपने नोट्स की इतनी इज्जत देखकर उसक मन प्रफ्फुलित हो जाता था .
जिज्ञासा जितनी तेज दिमाग थी उतनी चंचल स्वभाव की भी थी उसे कोई न कोई शरारत करने में बहुत मजा आता था या यूँ कहा जाए कि एक दम जिंदा दिल इंसान थी . इसलिए अपनी सहेलियों में ही नहीं वरन वह अध्यापकों की भी प्रिय शिष्या रहती थी . उसकी किसी भी शरारत को अध्यापक इस तरह नजर अंदाज कर देते थे जिस तरह माँ अपने बच्चे की शरारतों को अनदेखा करती है . सभी अध्यापक उसके व्यक्तित्व से प्रभावित रहते थे.
कालेज की स्नातक डिग्री तक अनीता और जिज्ञासा की दोस्ती चोली- दामन के साथ के रुप मे विख्यात थी, . मगर स्नातक डिग्री मे दोनों के विषय अलग- अलग थे, इसी वजह से पहले की तुलना मे वे ¨एक साथ बहुत कम रह पाती थी. यहाँ तक दूसरे दोस्त भी कह उठते थे ऐसी क्या बात है आजकल जिज्ञासा और अनीता एक साथ नजर नही आती है. कही दोनों मे कोई मतभेद तो ¨ नही हो गया है .उन्हे नजदीक से जानने वाले दलीले देते थे, ऐसी कोई बात नही है, दोनों ¨ किताबी कीडे है परन्तु अब दोनों के विषय बदल गये है।, तब कहाँ से एक साथ नजर आएँगे?इस तरह की टिपण्णियाँ उनके कानो ¨ मे अक्सर आती रहती थी, मगर उनके दिल मे हमेशा एक दूसरे के लिए दोस्ती का भाव बना रहता था .
पर स्नातक की पढाई खत्म होते- होते जिज्ञासा की दिवाकर के साथ शादी हो गई , उसे अभी भी वह बात अच्छी तरह याद है, जब उसकी शादी मे अनीता खूब नाची थी, उसका नाच देखते ही बनता था. सब परिजन¨लोगो ने उसके नाच की खूब तारीफ की थी. शादी के बाद जिज्ञासा अपने घर-संसार मे इस कदर व्यस्त रहने लगी कि धीरे- धीरे कर वह अपनी सारी पुरानी सहेलियों को भूलती गई . उसने अपने लिए एक अलग दूसरी दुनिया की रचना कर ली थी . दिवाकर को पति के रूप में पाकर वह सब कुछ भूल गई थी और खुद को धन्य मानती थी . दिवाकर भी एक आदर्श पति की तरह जिज्ञासा की हर छोटी- बड़ी ख़ुशी का ध्यान रखता था .

अनिता खुराना का नाम सुनकर तथा उसका नाम नेम प्लेट पर देखकर उसे अचरज के साथ-साथ एक हीन भावना का अहसास होने लगा था. जहाँ अपनी सहेली को इतने बड़े कालेज की प्रिंसिपल की कुर्सी पर पाकर उसका मन ख़ुशी से फूला नही समा रहा था वहाँ अपने आपको एक गृह-पत्नी के सीमित से दायरे में पाकर उसका मन दुखी होने लगा था. अगर यह वही अनीता खुराना निकली तो उसे देखकर क्या सोचेगी , क्या कहेगी
जिज्ञासा, तुम? तुम अपने किसी मुकाम को हासिल नही कर सकी? शादी करवाकर तुम सिर्फ एक साधारण गृहणी बनकर ही रह गई .
क्या उत्तर देगी वह इस बात का ?
तुम्हारे नोट्स पढकर मै आज इस प्रतिष्ठित पद तक पहुँच गई हूँ मगर तुम? तुम्हे तो मुझसे कई गुणा आगे होना चाहिए था .तरह- तरह के विचार उसके मन में आ- जा रहे थे .वह अपने आप को एक झंझावत मे फंसा हुआ पा रही थी. वह समझ नही पा रही थी कि किस तरीके से वह उसके सामने जाएगी. खुदा न खास्ताँ कही ऐसा न हो कि अनीता उसे पहचानने से ही मना कर दे .या फिर उससे अच्छी तरह बात ही नही करे। उसके मन मे तरह- तरह के विचारों की आँधी चल रही थी तभी चपरासी गार्डन मे आकर उनको आवाज देने लगा,
“मैडम ¨ मैंने आपके बारे मे प्रिंसिपल साहिबा को बता दिया है, वह आपको अपने कक्ष में बुला रही है ”
जिज्ञासा अपने आप को फिर से मानसिक तौर पर तैयार कर अपनी बेटी से कहने लगी,
"यक्षिता,चल¨, प्रिंसिपल मैम हमे बुला रही है "

जिज्ञासा ने कई तरह के विचारों में डूबे- डूबे किसी तरह अपनी बेटी के साथ प्रिंसिपल के चैम्बर मे झिझकते हुए कदमो से प्रवेश किया. सामने अपनी बचपन की सहेली को पाकर वह एक तरफ बहुत खुश थी तो दूसरी और अजीब सी घुटन महसूस कर रही थी . इधर अनीता ने भी जिज्ञासा को पहचान लिया और उसे देखते ही वह अपनी सीट से खड़ी हो गई और आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया, जिज्ञासा को सामने पाकर अनीता बहुत खुश नजर आ रही थी, मगर जिज्ञासा की झिझक अभी भी मन से दूर नही हुई थी, उसके मुँह से एक भी शब्द नही निकल रहा था, यह देखकर अनीता कहने लगी,
" जिज्ञासा तुम्हे यहाँ देखकर मै कितनी खुश हुँ, तुम इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा पाओगी , कैसी हो ¨ तुम? दिवाकर कैसे है? मम्मी - पापा? अरे तुम तो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत और खिली हुई नजर आ रही हो "
एक ही साँस मे बहुत कुछ बोल गई थी वह , अब जाकर जिज्ञासा की झिझक खत्म हुई , मम्मी को अपनी पुरानी सहेली के साथ मिलता देख यक्षिता कहने लगी, मम्मी, आप लोग बातें कीजिये , मै जरा बाहर कालेज घूमकर आती हूँ . अनीता ने यक्षिता को अपने पास बुलाया और प्यार से पुचकारने लगी, यक्षिता को देखते ही उसके भीतर का सिमटा हुआ ममत्व जाग उठा था, और प्यार से उसकी और देखते हुए कहने लगी,"
" जिज्ञासा, इतनी ही स्मार्ट, इतनी ही सुन्दर , किसी भी मामले मे तुमसे कम नही है"
. बेटी की तारीफ सुनकर जिज्ञासा मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई
और फिर उसने अनीता की निजी जिन्दगी के बारे मे पूछना शुरू किया,
“अनीता तुम तो मुझे शादी के बंधन मे बांधकर ऐसे गायब हो गई ¨जैसे अलादीन के चिराग का जिन्न, अच्छा, बताओ तुमने शादी कब की और ना ही तुमने मुझे अपनी शादी मे बुलाया ।, क्या करते है तुम्हारे पतिदेव?"
प्रश्नों की बौछार करते हुए उसने आगे कहना जारी रखा,
“अरे मै तो¨ मन ही मन बहुत डर रही थी कि तुम मुझे पहचानोगी भी या नही?आज तुम इतने बड़े पद पर आसीन हो .” ये सारी बाते सुनकर अनिता भाव-विव्हल हो गई , उसकी आँखे आँसुओं से नम हो गई , वह कहने लगी कैसी बात करती हो जिज्ञासा?मैंने आज जिस मुकाम को हासिल किया है वह सिर्फ तुम्हारी वजह से ही है . अगर तुम मेरी पढाई मे मदद नही करती तो क्या मै आज इस पद पर आसीन होती ? मै जीवन भर इस बात को भूल नही पाउंगी . मेरा हृदय सदैव तुम्हारे प्रति कृतज्ञ रहेगा . यह कह कर उसने एक दीर्घ
सांस छोड़ी और कुछ क्षण के लिए चुप हो गई , उसे चुप देखकर जिज्ञासा से रहा नही गया, वह कहने लगी,
" अनीता , यह तो तुम्हारा बड़प्पन है अन्यथा आजकल के जमाने मे कौन किसकी सुध लेता है? और अगर कोई जरा सी भी कामयाबी हासिल कर लेता है तो बात करना तो दूर की बात पहचानने से भी इन्कार कर देता है।,खैर छोड़ो इस बात को ¨ तुमने अपने परिवार के बारे मे कुछ भी नही बताया"
पहले तो अनीता कुछ देर तक चुप रही, फिर जिज्ञासा की तरफ देखकर कहने लगी," तुम तो ¨ सिद्वार्थ को ¨ जानती होगी ? तुम्हारे साथ कालेज मे पढता था, एम. ऐ. फाइनल मे' । जिज्ञासा ने हामी भरते हुए कहा " हाँ- हाँ याद आया, वह मेरा क्लासमेट था ,अच्छी तरह से जानती हूँ सिद्वार्थ¨को , वह तुम्हारा खास दोस्त हुआ करता था. तुम लोग तो काफी पहले से एक दूसरे को जानते थे "
" हाँ जिज्ञासा, जैसे ही सिद्वार्थ की एक मल्टी नेशनल कंपनी मे नौकरी लग गई वैसे ही उसने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा, उसी समय मेरी भी कालेज मे लेक्चरर के रुप मे नौकरी लग गई थी. और फिर हमने धार्मिक रीति -रिवाजों और माता पिता की मर्जी लेते हुए शादी कर ली, कुछ साल तक हमारा घर- संसार ठीक चलता रहा और इसी बीच मैंने एक बच्ची को जन्म दिया . पर कुछ समय बाद सिद्वार्थ का दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया,¨हम दोनों की नौकरी अलग- अलग जगह पर होने की वजह से हम अलग- अलग रहने के लिए मजबूर थे, फिर क्या कहूँ?"
कहते- कहते अनीता उदास और काफी भावुक हो गई और अपने आपको थोड़ा सभालते हुए, फिर से कहने लगी,
"बस धीरे- धीरे हम दोनों में अक्सर वैचारिक मतभेद रहने लगा . बात इस कदर बढ गई तुम्हे क्या बताऊँ, जिज्ञासा ? "
इतना कहते ही अनीता की आँखों से आँसू बहने लगे .
जिज्ञासा अनीता को सांत्वना देने के लिए उठ खड़ी हुई. और कहने लगी ,
" अनीता मै तुम्हारी पुरानी सहेली हूँ. भले ही हम इतने सालो से एक दूसरे मिल नहीं पाए पर मै अक्सर तुम्हारे बारे में सोचा करती थी .आज जो भी मन की बातें हो कहकर अपना दिल हल्का कर लो "

अनीता ने खुद को संभालते हुए फिर से कहना शुरू किया ,
" शुरू शुरू में तो सिद्धार्थ हर छुट्टी में हमारे पास यानी कि मेरे और मेरी बेटी चंदा के पास भागे चले आते थे और जब मुझे छुट्टी होती तो मै सिद्धार्थ के यहाँ चली जाती थी चंदा को लेकर . पर फिर सिद्धार्थ का आना धीरे- धीरे कम होने लगा. वह हर बार यही बहाना बनाता कि आफिस कि जिम्मेवारी बहुत बढ गई है इसलिए छुट्टी नहीं मिल पाती है . एक बार यहाँ अचानक स्कूल और कालेज में छुट्टी हो गई तो चंदा पापा के पास जाने की जिद्द करने लगी और कहने लगी कि मम्मी हम पापा को सरपराइज देंगे . "
इतना कहकर अनीता खामोश हो गई कुछ देर के लिए . जिज्ञासा ने उसे पानी पीने को कहा और इतनी देर में पियन भी चाय लेकर आ गया . अनीता ने जिज्ञासा को चाय पीने को कहा . फिर चाय पीते- पीते अनीता अपनी बात पूरी करते हुए एक लम्बा सांस लेते हुए बोली फिर क्या बताऊँ तुम्हे जिज्ञासा ,
" हम दोनों को सिद्धार्थ के पास पहुँचते- पहुँचते तकरीबन रात हो गई थी . बस से उतर कर हम लोग रिक्शा करके सीधा घर पहुँच गए . घर की लाइट्स जल रही थी और वैसे भी हम दोनों ने अपने- अपने घर की एक- एक चाबी एक दूसरे को दे रखी थी तांकि वक्त- बेवक्त कोई परेशानी न आये . बस जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो सिद्धार्थ को अपने आफिस की ही एक लड़की के साथ आपत्ति जनक हालत में देखा . यह तो अच्छा था कि अभी चंदा ने कुछ नहीं देखा था क्योंकि उसे पार्क में उसकी एक हमउम्र सहेली मिल गई थी . बस फिर तो मुझे ऐसा लगा कि सब कुछ खत्म हो गया है. वह रात मेरे जीवन की सबसे काली रात थी . बात को इस कदर बढता देख हम लोग कानूनी तौर पर हमेशा- हमेशा के लिए अलग हो गए . इन सारी बातों का खामियाजा मेरी बेटी को भुगतना पड़ा,"
अनिता की बाते सुनकर जिज्ञासा का मन भी भर आया , और उसने अपने दिल पर पत्थर रखकर अनीता से पूछा,
" बड़ी ही दुख भरी कहानी है तुम्हारी अनीता ,कितनी बड़ी है तुम्हारी लड़की? और आजकल वह किसके साथ रहती है?क्या सिद्धार्थ से तुम्हारी अब कोई बातचीत होती है "
एक गहरी सांस लेते हुए अनीता ने कहा,
" जिज्ञासा, हमारे तलाक की वजह से चंदा को गहरा सदमा लगा, उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा, वह हमेशा चुपचाप रहने लगी, वह हम दोनों मे से किसी के भी साथ भी रहना नही चाहती थी , आजकल वह दसवीं कक्षा मे पढ़ती है और मँसूरी मे हॉस्टल में रहती है .मेरा जब मन करता है तो मै उससे मिल आती हूँ . रही बात सिद्धार्थ की उसने तो तलाक के बाद कभी चंदा से भी मिलने की कोशिश तक नहीं की .और किसी से मुझे सुनने को मिला था कि उसने अपनी उस सहयोगी कर्मचारी के साथ शादी कर ली थी . अब क्या फ़ायदा उन बातों को याद करने का "
कहते- कहते अनिता फफक फफककर रोने लगी और रूंधे हुए गले से कहने लगी,

" तुम्हारी बेटी यक्षिता को देखकर मुझे मेरी बेटी की याद आ गई . तुम बहुत खुशनसीब हो जो इतना प्यार करने वाला पति और घर संसार मिला है . मुझे देखो भीतर से मै पूरी तरह से खोखली हो चुकी हूँ , जानती हो जिज्ञासा, हमारी असली संपत्ति तो हमारा घर परिवार , हमारे बच्चे ही होते है. वह ही हमारी वास्तविक पूँजी है, मुझ अभागी को देखो ¨, इतने उच्च पद पर आसीन होने बावजूद भी आज खाली हाथ दामन बिछाए खडी हूँ “
यह बात सुनकर जिज्ञासा का मन भर आया .

23 comments:

  1. महिलाओं को जीवन में कैरियर के लिए भी कभी कभी बडा मूल्‍य चुकाना होता है !!

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  2. Awnindra Dutt Tiwary8 June 2010 at 1:56 pm

    alka g very true & real story. I think our young generation girls must read this and take lession from it.
    Now a days there is a rat race towards modernisation, that is spoiling family life.
    once agains thnx

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  3. Alkaji AApki khani "Asli Punji" Bdi Marmik or Bhagy ke Khel wali hai AApne jo shbdo or Halat ka Chunav kiya hai vo Bemisal hai Jigyasa or Anita ki khani ke madhyam se aapne Samaj ke us halat ka bakhan kiya hai jo hmare aas-pas har roj hota hai Lekin hme Dikhta Nhi,<<<<<<AAj AApko Mai Nye Nam Se Pukar rha Hu **##Smaj Prheri##**

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  4. Yes, this is a perfect way to realise those "real values of relation"... impresive words used.

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  5. Nandkumar Upadhyay10 June 2010 at 9:20 am

    Ye hi aaj ke samay ki asali sacchai hai log samajh hi nahi pate aur samay niklne ke baad hi sochete hai very nice story .This is a real values of relations which we r maintain

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  6. माननीय अल्काजी
    योग्य अभिवादन
    असली पूंजी का एक एक शब्द रिश्तों की हकीक़त को उजागर करता है ---
    हमारी असली संपत्ति तो हमारा घर परिवार हमारे बच्चे ही होते हैं --इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती हमने ध्यान से आपके लेख असली पूंजी को पढ़ा
    दुनियां की कोई भी पत्नी चाहे वो कितनी ही माडर्न सोसायटी से ही क्यों न हो
    कितनी भी पढ़ी लिखी या अनपढ़ हो लेकिन अपने पति को किसी और महिला की बांहों में
    देखना बर्दाश्त नहीं कर पाती है और फिर उनके बीच बिखराव आना स्वाभाविक हो जाता है लेख का मजबूत पक्ष है
    यही स्थिति पुरुषों के लिए भी लागू होती है इसे हम प्रकृति प्रदत्त मानव स्वभाव भी कह सकते हैं
    लेख में आपने रिश्तों का भी उल्लेख किया हमारी असली संपत्ति तो हमारा घर परिवार हमारे बच्चे ही होते हैं
    आपका ये कथन भी सच्चाई के धरातल को छूता है एक दौर होता है जब इन्सान जिन रिश्तों की क़द्र नहीं
    करता एक दिन वही रिश्ते उसके सब से अधिक कठिन समय में उसके साथ होते हैं जिन्हें हम अपने घर परिवार के
    रिश्तों के रूप में जानते मानते हैं उस वक़्त हमारी दौलत या उच्च पद भी निरर्थक सिध्ध होते हैं दौलत उच्च पद
    की तुलना आत्मीय सुख या रिश्तों से नहीं की जा सकती सामाजिक विसंगतियों को उजागर करते लेख के लिए
    आप बधाई की पात्र हैं --- सादर---

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  7. Bahut hi marmik and sargarbhit kahani he, aur me samajta hu ki yeh sachhi kahani he. yeh sahi he ki aurt ko do me se ek hi nasib ho sakta he, carrear ya fir pariwar. Very nice

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  8. Alkaji i wan 2 read yur books....

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  9. kaya aap apne book hame bhej sakte hai padne ke leya,ham apke ketab kharedne ke layak nahe hai, magar aap bheja gi nahe.

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  10. Sanjeev Kumar Saini15 June 2010 at 5:08 pm

    namaskar alka ji, apki kuch kahaniyan padi, bahut badiya sanskaran hian apki kahaniyon ka lagta hian apne jivan ke uppar hi adarit ho. good mam keep it up

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  11. Acchha huya Alka ji..aapne yaad dila diya..ab mera mann bhee 12 saal purane collegetime mein jaane ko ho raha hai.

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  12. log apni ego ko leker itne tuff ho jate hai kee unhe ptta he nahee chalta kee unke ye tuffness unke bachchon ke soft soch per kya asar keregee, when you go and study, you wil find in most of the psychetric illnesses the reason behind id conflict between pt's parent when person was child

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  13. hila ke raha diya

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  14. Very Very Nice story.

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  15. aaj ke duniya me dil chayi ko nahe maanta, sab yatharvadi hai, magar ye kahane apne aaj ke samaj ke badale pariwash ke samne rakhte hai, jo nagriya jewan me roj gut raha hai.

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  16. This is the true story and can be tagged as Ghr Ghr ki Kahani. अल्काजी, आपको इतनी अच्छी कहानी के लिए बधाई

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  17. story is nice

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  18. Biresh Kumar Tyagi22 June 2010 at 8:22 am

    bahoot hi badhiyaa kahani hai

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  19. Super Story mam

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  20. wah Alka ji! aajke vatavaran ko dekhte huye aapke mann me itne gambhir vichar aaye. amazing thoughts.aapne nayika ka naam jigyasa rkha? which curiosity. actually when jigyasa went to meet Anita she was curious to know abt the shining lifestyle of Anita.actually jigyasa was in jigyasa's mind.But Anita was more ambitious about career n lifestyle she chose to be a working women which sacrificed her real treasure of happy family living. But Jigyasa who was more curious n intelligent sacrificed the career for beautiful family. Difference of two mindsets in society. which is better to sacrifice. on the one side its the lusture n shining lifestyle and other side the peaceful n content family life.here people may be misguided by materialistic world creating impatience in life.what to say more we are all independent to choose the lifestyles...one busy, modern n Egoistic lifeland other one content n peaceful life

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  21. सभी पाठकों और मित्रों की मै उनके प्रोत्साहन और प्यार के लिए बहुत- बहुत आभारी हूँ जिससे मुझे आगे भी लिखने की प्रेरणा मिलती रहती है

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