Saturday 7 May, 2011

"औरत होने का दर्द "



"औरत होने का दर्द "


औरत होने का दर्द कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !

कभी माँ, कभी बीवी बनकर बलि की देवी बनती है
नौ महीने गर्भ के बीज को पल- पल खून से सींचती है
नव कोपल के फूटने के लम्बे इन्तजार को झेलती है
कौन आगे बढकर प्यार से माथे का पसीना पौंछता है ?
नवजीव के खिलने के असहनीय दर्द को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !


माँ बनकर अपने जिगर के टुकड़े को हर दिन बढ़ते देखती है
कभी प्यार से तो, कभी डांट से पुचकारती है
खुद भूखा रहकर भी हर एक का पेट भरती है
कभी रात का बचा भात तो ,कभी दिन की बची रोटी रात में खाती है
इस बलिदान को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !

कभी पति, कभी बच्चों की दूरी को कम करते पिस जाती है
बच्चें लायक हो तो पिता का सीना गर्व से फूलता है
परीक्षा में कम निकले तो हर कोई माता को कोसता है
हम सफ़र के माथे की हर शिकन को तुरंत भांप लेती है
इस ममता को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !

कभी बेटी, कभी बहन बनकर सब सह जाती है
कभी बाप , कभी भाई के गुस्से में भी मुस्कुराती है
मायके में बचपन के आँगन का हर कर्ज चुकाती है
अपने हर गम, हर दुःख में भी सबका गम भुलाती है
इस दुलार को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !

कभी प्रेमिका बनकर, कभी दोस्ती के नाम पर छली जाती है
खुद गुस्सा होकर भी अपने प्रेमी को हर पल मनाती है
प्रेमी के मन की हर बात बिन कहे समझ जाती है
अपना हर आंसू उससे छुपा लेती है
कभी उसकी याद में तो, कभी बेरुखी में तड़पती है
इस जलन को कौन समझता है ? ,
हर कोई बस परखता है !

कभी बहू बनकर दहेज़ के नाम पर ताने सह जाती है
बेटी पैदा करने पर गुनाहगार ठहराई जाती है
कभी प्रसव तो , कभी गर्भ -पात की पीड़ा झेल जाती है
अपने ही अरमानों की अर्थी अपने कांधो पर उठाती है
इस संवेदना को कौन समझता है ? ,
हर कोई बस परखता है !

12 comments:

  1. नारी की संपूर्णता को मेरा प्रणाम.

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  2. alka ji aurat hone ka dard aapne chand sabdon me piro diya dil ko chu jane wala sach ,sach much tarif k kabil likha hai..

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  3. Alka ji Aapne Aurat Ki paribhasha ko bahut achhe se bataya hai Aapki rachna kabil E Tarif hai

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  4. Ayan Sanjeev Vanshi8 May 2011 at 2:51 pm

    aai alka, this is really nice saying

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  5. ine ghat lafzaan ch aurat nu bayaan krta alka ji bhut changa lagya..

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  6. M.M. THAPAR, JALANDHAR (PUNJAB)12 May 2011 at 6:17 am

    Your poem on the role of Mother has been well described in different ways and I really liked it and send my wholehearted appreciation, commendation and praise for your this heart touching, exciting and beautiful poem on social issue. I want to see you on the climax of your profession. My good wishes are always with you.

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  7. सच कहा हर कोई बस परखता है
    बहुत भावमय रचना...

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  8. sdian beet jaengi lakin koi bhi paida nhi hoga jo ek aaurat k dard ko samje

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  9. बहुत ही मार्मिक और भावो का लबालब भरा हुआ कलश है ...नारी को सिर्फ और सिर्फ परखा जाता है ,परिक्षाए ही ली जाती है पर कोई उसे समझने कि चेष्टा नहीं करता ..बधाई हो अलका जी आपको इस सशक्त रचना के लिए

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  10. विचारणीय प्रश्न उठाती बहुत सुन्दर रचना , खूबसूरत प्रस्तुति .
    स्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें

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  11. बहुत सुन्दर रचना , खूबसूरत प्रस्तुति

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