अपराजिता के जीवन का यह पहला अवसर था ,जब वह किसी बड़े नेता से मिलने आई थी .उनके ऑफिस में प्रवेश करते समय वह पूर्णतया सहमी हुई थी .मगर बचपन से ही उसमें आत्म-विश्वास कूट-कूटकर भरा था .ऑफिस के बाहर खड़े दरबान ने कहा ," मैडम, विधायक साहब से मिलना चाहती हो ? साहब बहुत व्यस्त हैं ."
अपराजिता ने विनीत-भाव से उत्तर दिया ," मैं उनसे एक आवश्यक काम के लिए मिलना चाहती हूँ. उन्होंने कहा भी था जब जरुरत पड़े तो मिलने आ सकती हो."
दरबान ने अपराजिता के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा ," अच्छा ,ठीक है मैडम ! पर्ची पर अपना नाम ,स्थान एवं काम लिखकर दीजिए. मैं साहब से बात करता हूँ आपके बारे में "
वह मन ही मन घबरा रही थी कि वह गोपाल जी से मिल भी पाएगी या नहीं या वह उसे बाहर से ही लौट जाने को कह देंगे. कुछ देर बाद दरबान जब वापिस आया तो उसने न सिर्फ अन्दर आने को कहा बल्कि इज्जत के साथ बैठक-कक्ष में ले गया . जबकि ऑफिस के बरामदे में मिलने वाले लोगों का तांता लगा हुआ था . वह उस बैठक -कक्ष में बैठकर तरह -तरह के विचारों के उधेड़-बुन में खो गई . वह मन ही मन अत्यंत खुश हो रही थी कि गोपाल जी ने उसे विशिष्ट स्थान प्रदान कर अनुग्रहित किया है. जहाँ उनको मिलने के लिए आम- लोगों को लम्बी-कतार में खड़े होकर दीर्घ प्रतीक्षा करनी पड़ती है ,वहाँ उसे न तो किसी भी प्रकार का इन्तजार करना पड़ा बल्कि उसे बैठक-कक्ष में जाने का इशारा कर आम-लोगों की नज़रों में ऊँचा उठा दिया. वह मन ही मन अपने आप को गौरवान्वित अनुभव कर रही थी कि अवश्य विधायक-साहब कहीं न कहीं उसके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के किसी न किसी पहलु से प्रभावित हुए है .अब उसे मन ही मन लग रहा था कि वह दिन दूर नहीं है, जब उसके सारे दुर्दिन दूर हो जाएंगे तथा उसकी जिन्दगी में वे सारी खुशियाँ लौट आएगी जिसका उसे एक लम्बे अरसे से इन्तजार था .वह मन ही मन इस बात से फूली नहीं समा रही थी कि गोपाल जी ने उनके घर पर पहली मुलाक़ात में दूसरे लोगों की तुलना में उस पर विशेष ध्यान दिया हैं .वह उनके सुसज्जित बैठक-कक्ष को ध्यानपूर्वक निहारने लगी .उसने देखा कि बैठक-कक्ष की प्रत्येक वस्तु बहुत ही सलीके से रखी हुई थी.देखते -देखते उसे अपना अतीत याद आने लगा .ऐसी बात नहीं थी कि अपराजिता विधायक साहब को पहले नहीं मिली हो .वह उनको दो-तीन माह पूर्व क्षेत्रीय चुनावी कार्यकर्मों के दौरान मीटिंगों में दो-तीन बार मिल चुकी थी.
उसकी संगठन-क्षमता तथा भाषण-शैली से प्रभावित होकर एक बार गोपाल जी ने कहा ," अपराजिता , तुम एक अच्छी कार्यकर्त्ता हो. भविष्य में पार्टी के लिए एक वरदान साबित होगी .अगर तुम्हें किसी भी सिलसिले में मेरी सहायता की जरुरत अनुभव हो,तो बेझिझक मुझसे मिलने आ सकती हो. मेरे घर के दरवाजे हमेशा तुम्हारे लिए खुले मिलेंगे. "अचानक नौकर को सामने पाकर उसका ध्यान टूटा. नौकर ने शांत भाव से उसके सामने पानी का गिलास रख दिया तथा न्रमतापूर्वक पूछने लगा," मेम साहिब , चाय लेंगी या कॉफ़ी ?"अनमने-भाव से अपराजिता ने चाय के लिए हामी भर दी .अपराजिता बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि वाली थी ,साथ ही साथ महत्वाकांक्षी भी. वह बुलंदियों के शिखर को छूना चाहती थी,परन्तु लक्ष्य को पाने के लिए विरासत में मिले संस्कारों को छोड़ना नहीं चाहती थी .उसकी भारतीय संस्कारों में दृढ़ आस्था थी . किसी भी कीमत पर वह उन्हें खोना नहीं चाहती थी . बचपन से ही उसके संस्कारयुक्त मन ने महत्वाकांक्षा के कई हवाई-किलों का निर्माण कर लिया था. परन्तु ज्यों-ज्यों उसकी उम्र गुजरती गई तथा वह जिंदगी के यथार्थ धरातल से परिचित होती गई,एक-एककर उसके सारे सपने चूर चूर होकर टूटते नजर आए.सपनों को टूटता देखकर भी उसने हिम्मत नहीं हारी ,वरन वह अपनी दुगुनी शक्ति के साथ जीवन की कठोरताओं के साथ डटकर संघर्ष करने के लिए तत्पर हो गई.संघर्ष करते-करते अब उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया था. वह एक मंझे हुए परिपक्व इंसान की भाँति सोचने लगी थी. जब उसकी मुलाक़ात पहली बार गोपाल जी से हुई थी तो उसे लगने लगा था मानो ईश्वर ने उसकी अन्तः-पुकार सुन ली हो तथा उनको उसके लिए एक मसीहा के रूप में अवतरित किया हो . अक्सर वह अपराजिता के सौंदर्य,प्रतिभा तथा वाक्-कुशलता की भूरी-भूरी प्रशंसा करते थे ,यह भी एक कारण था कि उसके दिल में गोपाल जी के प्रति एक अलग स्थान था.तभी कमरे में नौकर ने चाय के प्याले के साथ प्रवेश किया .उसके कदमों की आवाज सुनकर वह अपने अतीत की दुनिया से लौटकर वर्तमान में आ गई . वह सोचने लगी कि जब गोपाल जी कमरे के भीतर प्रवेश करेंगे तो किस तरह उसे उनका अभिवादन करना चाहिए . क्या वह उनके पाँव छुएगी या हाथ जोड़कर प्रणाम करेगी ? किस तरह वह अपनी समस्याओं को उनके समक्ष रखेगी ?उसका तो राजनैतिक क्षेत्र से कभी भी सम्बन्ध नहीं रहा है .वह तो इस क्षेत्र में पूर्णतया अनाड़ी है .उसके मन में अभी भी यह अटूट विश्वास था कि वह अपने ईश्वर-प्रदत किसी देवता के सामने गुहार लगाने आई है ,जो उसकी मुराद को जरुर पूरा करेंगे . उसका मन इस बात की गवाही दे रहा था तभी तो उन्होंने उसे अपने बैठक-कक्ष में बैठने के निर्देश दिए थे . आधा-घंटा बीतने के बाद गोपाल जी ने बैठक-कक्ष में प्रवेश किया .ज्यों-ही उन्होंने कमरे में प्रवेश किया ,वैसे ही अपराजिता उनके स्वागत में खड़ी हो गई और चरण-स्पर्श करने के लिए आगे की ओर झुकी .गोपाल जी ने हलके-से उसकी पीठ थपथपाई और बीच में अवस्थित सोफे पर जाकर इस तरह बैठ गए मानो एक राजा अपने सिंहासन पर विराजमान हो रहा हो . फिर स्नेहिल-निगाहों से उसकी तरफ एकटक देखने लगे तथा पूछने लगे ," अपराजिता ! यह बताओ, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ ? अच्छा यह बताओ ,जिन्दगी में क्या करना चाहती हो ?"अपराजिता तो इसी अवसर की तलाश में थी कि कब गोपाल जी उसे अपनी बात रखने को कहे . बिना रुके एक ही सांस में उसने अपनी बात उनके सामने रख दी .वह कहने लगी " जी, मैं अपने महाविद्यालय की अच्छी छात्राओं में से एक थी .मुझे अपने आप पर पूर्ण विश्वास है कि अगर ईश्वर ने मुझे एक मौका दिया तो मैं उस पर पूरी तरह खरी उतरूंगी .ऐसे मुझमें एक अच्छे संगठन-कर्ता के अलावा वह सभी गुण भी विद्यमान है जो किसी नेतृत्व करने वाले में होने चाहिए. आप तो इस बात से परिचित भी है कि मैं अपने दायित्वों के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित हूँ .दुःख तो केवल इस बात का है कि आज तक मुझे समझने वाला कोई सच्चा मार्ग-दर्शक नहीं मिला . अब आपके संपर्क में आने से मुझे लग रहा है कि मैं भी समाज के कुछ काम आ सकती हूँ और अपने जीवन को सार्थक बना सकती हूँ ."इतना बताने के बाद वह एकदम चुप हो गई. कमरे में शान्ति व्याप्त हो गई . गोपाल जी भी कुछ नहीं बोले .वह मन ही मन सोच रही थी कि कैसे उसने अपने मन की बात इतने आत्म-विश्वास के साथ उनके सामने रख दी .वह सोच रही थी कि गोपाल जी की चुप्पी इस बात की प्रतीक है कि उन्होंने कैसे उसकी बात को गंभीरतापूर्वक लिया है.परन्तु ये क्या.! गोपाल जी ने अचानक उसके हाथ को अपने हाथ पर रख लिया और उसे बड़े प्यार से सहलाने लगे.उस समय कमरे में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था. अपराजिता की दृष्टि में वह पितृ-तुल्य इंसान थे. हाथ सहलाने से वह सिहर उठी .वह तो भय से अन्दर तक काँप गई . उसकी समझ में कुछ नहीं आया कि माजरा क्या है.उसे लगा मानो उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसकती जा रही है वह अपने हाथ को खींचने का प्रयास कर रही थी. कमरे में कुछ देर तक ऐसा सन्नाटा छाया रहा कि अगर एक सुई भी गिरती तो उसकी आवाज भी प्रतिध्वनित होती. अपराजिता के विरोध को देख कर गोपाल जी धीमे स्वर में कहने लगे "देखो,अपराजिता मैं इस क्षेत्र का बहुत पुराना विधायक हूँ . मैं जनता का सच्चा- सेवक हूँ . हर दिन हजारों लोग अपनी समस्याएँ लेकर मेरे पास आतें है . उनमें बहुत-सी औरते भी होती हैं, परन्तु आज तक ऐसा नहीं हुआ कि मुझे कोई इस कदर भाया हो . मैं तुमे बहुत पसंद करता हूँ पहले दिन से तुम मुझे बहुत अच्छी लगी थी .मैं तुमे राजनीति में हर तरह का प्रोत्साहन दे सकता हूँ और हर समय तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा. बस तुम भी थोडा-सा मेरे साथ खड़ी रहो. मेरा तात्पर्य समझ गई होगी ."
उनकी ये अप्रत्याशित बातें सुनकर अपराजिता अवाक रह गई उसे तो मानो काटो खून नहीं. उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. वह तो सुन्न सी हो गई . इतने बड़े व्यक्ति के मुख से ऐसी बात सुन कर वो क्या कहे .इतने स्पष्ट शब्दों में गोपाल जी का प्रणय-निवेदन सुन कर वह बुरी तरह झुंझला उठी. उस समय अपराजिता अपने आप को बहुत लाचार-सा अनुभव कर रही थी . उसे अपने सपनों का महल टूटता बिखरता नजर आ रहा था . वह सोच रही थी कि जिस तरह की उम्मीद गोपाल जी उससे कर रहे है वह पूरी करना उसके बस की बात नहीं है. जीवन-भर के कठोर संघर्षों से जूझते-जूझते वह थक-सी गयी थी . एक उम्मीद की किरण जागी थी . अब उसे अपने सब तरफ अँधेरा दिखाई पड़ रहा था.गोपाल जी के रूप में उसे लगने लगा था कि शायद कोई मसीहा भगवान् ने उसके लिए भेज दिया हो. अब उसे लग रहा था कि काश धरती फट जाए और वह उसमे समा जाए. वह खुद को बेजान-सा महसूस कर रही थी. कुछ देर बाद अपराजिता बहुत हिम्मत बटोरकरबोली, " ऐसी क्या खासियत है मुझमें, और मैं तो उम्र में भी आप से बहुत छोटी हूँ."पर उनकी आँखों में तो अपराजिता को लेकर अजीब-सी चमक दिखाई दे रही थी. फिर काफी सोच विचारकर के अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए अपराजिता बोली"आप मेरे से उम्र में भी काफी बड़े है और इतने बड़े आदमी भी है . मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूँ और आपका बहुत ऊँचा स्थान है मेरे मन में. मैं तो एक बहुत मामूली-सी औरत हूँ आपकी समाज में इतनी मान प्रतिष्ठा है. मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से उस पर जरा सी भी आंच आए . मैं इतनी जल्दी आपको और क्या कह सकती हूँ ?" अपराजिता यह भी नहीं चाहती थी कि वह इस समय कोई बेवकूफी करे और जल्दबाजी में कोई जवाब दे . उसे उस समय बात को टाल देना ही बेहतर लगा . वह चाहती थी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे . गोपाल जी ने भी एक चतुर नेता की तरह अपराजिता का चेहरा पढ़ लिया और कहने लगे," अपराजिता, घबराओ मत , मैंने तो सिर्फ अपने मन की बात तुम्हें बताई है , अगर दुनिया में आगे बढना है तो इन छोटी-मोटी बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए .फिर भी मैं तुम्हें एक बात का आश्वासन देता हूँ कि मैं हमेशा ही तुम्हारा अच्छा दोस्त बना रहूँगा और तुम्हारी पूरी मदद करता रहूँगा ".यह बात सुन कर अपराजिता की जान में कुछ जान आई .गोपाल जी कहने लगे कि दोस्ती में उम्र नहीं दिल देखा जाता है .गोपाल जी को थोडा सहज-सा होते देख अपराजिता भी कुछ ठीक देर बातें करती रही . इतनी देर में नौकर चाय लेकर आ गया,गोपाल जी ने उसे चाय लेने को कहा .अपराजिता के लिए यह क्षेत्र बिलकुल नया था . उसने तो अपना सारा जीवन पढ़ने -लिखने में ही बिताया था. वह तो राजनैतिकशब्दावली को समझने में असमर्थ थी.किस बात का सही मायने में क्या अर्थ था उसकी समझ से परे लग रहा था ,फिर भी वह खुद को सहज दर्शाते हुए चाय खत्म करने लगी. जैसे ही चाय ख़त्म हुई तो अपराजिता ने बहुत हिम्मत बटोरकर बाहर जाने की इजाजत मांगी. उन्होंने इसी बीच उसे दोपहर के खाने का न्यौता दे दिया वह सिरहिलाकर उठ खड़ी हुई. गोपाल जी भी उसके साथ ही उठ खड़े हुए तो कुछ क्षण वह रुकी और औपचारिकतावश अभिवादन करने के लिए झुकी तो आशीर्वाद देने की जगह गोपाल जी ने उसके अधरों का चुम्बन लेना चाहा तो अपराजिता का मानो काटो तो खून नहीं. वह गोपाल जी के इस तरह के अप्रत्याशित व्यवहार से सन्न रह गई .. उसने गोपाल जी को इंकार कर दिया .. वह उसके जीवन की सबसे बड़ी अस्वाभाविक घटना थी उसके हाथ पैर काँप रहे थे और सांस उखड रही थी. जैसे-तैसे खुद को थोडा सहज करके वह बिना इधर-उधर देखे तेज क़दमों से बाहर निकल गई . गेट के बाहर पहुँच कर भी अपराजिता की सांस उखड़ी हुई थी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ है.गेट पर खड़ा दरबान उसे देखते ही मुस्कराते हुए बोला ," मैडम ,चिंता मत कीजिए . आपका काम शत-प्रतिशत हो जाएगा ."दरबान की बात को अनसुनी कर तरह -तरह के भयानक विचारों के सागर में गोते लगाते हुए वह कब अपने दरवाजे की दहलीज पर पहुँच गई कि उसे पता ही नहीं चला . वह सुबह जहां से इतने सपने लेकर चली थी उसी जगह वापिस खड़ी थी.उसे भय लग रहा था . उसे लग रहा था कि गोपाल जी को मिलकर अपनी समस्या का निदान पाना महज एक मृग-मरीचिका थी !
उनकी ये अप्रत्याशित बातें सुनकर अपराजिता अवाक रह गई उसे तो मानो काटो खून नहीं. उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. वह तो सुन्न सी हो गई . इतने बड़े व्यक्ति के मुख से ऐसी बात सुन कर वो क्या कहे .इतने स्पष्ट शब्दों में गोपाल जी का प्रणय-निवेदन सुन कर वह बुरी तरह झुंझला उठी. उस समय अपराजिता अपने आप को बहुत लाचार-सा अनुभव कर रही थी . उसे अपने सपनों का महल टूटता बिखरता नजर आ रहा था . वह सोच रही थी कि जिस तरह की उम्मीद गोपाल जी उससे कर रहे है वह पूरी करना उसके बस की बात नहीं है. जीवन-भर के कठोर संघर्षों से जूझते-जूझते वह थक-सी गयी थी . एक उम्मीद की किरण जागी थी . अब उसे अपने सब तरफ अँधेरा दिखाई पड़ रहा था.गोपाल जी के रूप में उसे लगने लगा था कि शायद कोई मसीहा भगवान् ने उसके लिए भेज दिया हो. अब उसे लग रहा था कि काश धरती फट जाए और वह उसमे समा जाए. वह खुद को बेजान-सा महसूस कर रही थी. कुछ देर बाद अपराजिता बहुत हिम्मत बटोरकरबोली, " ऐसी क्या खासियत है मुझमें, और मैं तो उम्र में भी आप से बहुत छोटी हूँ."पर उनकी आँखों में तो अपराजिता को लेकर अजीब-सी चमक दिखाई दे रही थी. फिर काफी सोच विचारकर के अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए अपराजिता बोली"आप मेरे से उम्र में भी काफी बड़े है और इतने बड़े आदमी भी है . मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूँ और आपका बहुत ऊँचा स्थान है मेरे मन में. मैं तो एक बहुत मामूली-सी औरत हूँ आपकी समाज में इतनी मान प्रतिष्ठा है. मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से उस पर जरा सी भी आंच आए . मैं इतनी जल्दी आपको और क्या कह सकती हूँ ?" अपराजिता यह भी नहीं चाहती थी कि वह इस समय कोई बेवकूफी करे और जल्दबाजी में कोई जवाब दे . उसे उस समय बात को टाल देना ही बेहतर लगा . वह चाहती थी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे . गोपाल जी ने भी एक चतुर नेता की तरह अपराजिता का चेहरा पढ़ लिया और कहने लगे," अपराजिता, घबराओ मत , मैंने तो सिर्फ अपने मन की बात तुम्हें बताई है , अगर दुनिया में आगे बढना है तो इन छोटी-मोटी बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए .फिर भी मैं तुम्हें एक बात का आश्वासन देता हूँ कि मैं हमेशा ही तुम्हारा अच्छा दोस्त बना रहूँगा और तुम्हारी पूरी मदद करता रहूँगा ".यह बात सुन कर अपराजिता की जान में कुछ जान आई .गोपाल जी कहने लगे कि दोस्ती में उम्र नहीं दिल देखा जाता है .गोपाल जी को थोडा सहज-सा होते देख अपराजिता भी कुछ ठीक देर बातें करती रही . इतनी देर में नौकर चाय लेकर आ गया,गोपाल जी ने उसे चाय लेने को कहा .अपराजिता के लिए यह क्षेत्र बिलकुल नया था . उसने तो अपना सारा जीवन पढ़ने -लिखने में ही बिताया था. वह तो राजनैतिकशब्दावली को समझने में असमर्थ थी.किस बात का सही मायने में क्या अर्थ था उसकी समझ से परे लग रहा था ,फिर भी वह खुद को सहज दर्शाते हुए चाय खत्म करने लगी. जैसे ही चाय ख़त्म हुई तो अपराजिता ने बहुत हिम्मत बटोरकर बाहर जाने की इजाजत मांगी. उन्होंने इसी बीच उसे दोपहर के खाने का न्यौता दे दिया वह सिरहिलाकर उठ खड़ी हुई. गोपाल जी भी उसके साथ ही उठ खड़े हुए तो कुछ क्षण वह रुकी और औपचारिकतावश अभिवादन करने के लिए झुकी तो आशीर्वाद देने की जगह गोपाल जी ने उसके अधरों का चुम्बन लेना चाहा तो अपराजिता का मानो काटो तो खून नहीं. वह गोपाल जी के इस तरह के अप्रत्याशित व्यवहार से सन्न रह गई .. उसने गोपाल जी को इंकार कर दिया .. वह उसके जीवन की सबसे बड़ी अस्वाभाविक घटना थी उसके हाथ पैर काँप रहे थे और सांस उखड रही थी. जैसे-तैसे खुद को थोडा सहज करके वह बिना इधर-उधर देखे तेज क़दमों से बाहर निकल गई . गेट के बाहर पहुँच कर भी अपराजिता की सांस उखड़ी हुई थी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ है.गेट पर खड़ा दरबान उसे देखते ही मुस्कराते हुए बोला ," मैडम ,चिंता मत कीजिए . आपका काम शत-प्रतिशत हो जाएगा ."दरबान की बात को अनसुनी कर तरह -तरह के भयानक विचारों के सागर में गोते लगाते हुए वह कब अपने दरवाजे की दहलीज पर पहुँच गई कि उसे पता ही नहीं चला . वह सुबह जहां से इतने सपने लेकर चली थी उसी जगह वापिस खड़ी थी.उसे भय लग रहा था . उसे लग रहा था कि गोपाल जी को मिलकर अपनी समस्या का निदान पाना महज एक मृग-मरीचिका थी !
bloggers की दुनिया में आपका हार्दिक अभिनन्दन !
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील कहानी प्रस्तुत की है .इस क्रम को जारी रखे .
पता नहीं कितनी अपराजिता गोपाल जी जैसे नेताओं के चुंगल में फंसती होगी ,जिसका ज्वलंत उदहारण आंध्रप्रदेश के राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी हैं .
बहुत ही सक्षम लेखन नारीवादी समस्याओं को उजागर करने के लिए . एक बार पुनः बधाई !
you should write regularly. Excellent. with best wishes.
ReplyDeleteYou are really talented writer.You should write rergularly to share befitting experience,observation and incident of the present society. Th flow of language used in the story is really appreciable in addition to the description of the story. Congratulation ! Keep it up !!
ReplyDeleteRajib Ranjan,Kolkata
I adore the attempt,wish the best.. wud revert soon
ReplyDeletePramod Gupta
amazing keep it up
ReplyDeleteVande matram...
ReplyDeleteur stories r too good...near to reality..
i read the story yesterday about Aparajita's encounter with Gopal... and अपराजिता पराजित हो गयी...यतार्थ से उसका साक्षात्कार हो गया....
rgds
manoj joshi
you are so talented, friend. may God bless you
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक कहानी .एक दुखियारी स्त्री ,जो अपने को राजनीती के काबिल समझती है और जीवन में कुछ कर गुजरना चाहती है ; मगर लंगोट के कच्चे नेतालोग किस तरह उसकी मजबूरी को कैश करना चाहते है. उसका एक जीवंत उदहारण प्रस्तुत करने वाली कहानी लेखिका के कलम को शत-शत नमन करती है ,जिस कलम से उन्होंने साहस के साथ बहुत भावुक एवं यथार्थ चित्रण किया है .
ReplyDeleteअलका, वास्तव में एक शानदार और मार्मिक चित्रण किया है आपने भारतीय राजनीति के पर्दे के पीछे छिपी सच्चाई का। मगर यह भी हकीकत है कि राजनीति में कुछ महिलाएं भी शारीरिक शार्टकट से शीर्ष पदस्थ हुई हैं। अपराजिता तो एक मजबूर पात्र है। कहानी का मर्म कुछ भी हो लेकिन इससे सबक क्या मिला? यही कि या तो गोपाल जी की इच्छा से चलो, नहीं तो मजबूरियों की जिस दहलीज से शुरू हुए थे वहीं पर खड़े रह जाओगे।
ReplyDeleteI created a moment in my brain.....Thats the power of your words.. thanks for sharing.
ReplyDeleteJitna sundar aap ho, utni sundar apki kahani.
ReplyDeleteअलका जी,
ReplyDeleteप्रणाम,
कहानी के चरित्र "अपराजिता" जैसी कितनी ही लडकिया और महिलाएं "गोपालजी" जैसे समाज के कुत्सित विचारों का शिकार होती रहती हैं. अपराजिता के विचार, बुद्धि और चरित्र के बारे में जितना कहूँ वो कम होगा, क्योंकि वो एक स्वच्छ चरित्र के साथ ही कुशल विवेक वाली निकली की उसने अपनी अस्मत की रक्षा बड़ी कुशलता के साथ परिवेश को देखकर किया. लेकिन उनका क्या जो जानबूझ कर निजी स्वार्थ और निजी महत्वकांक्षा के कारण अपनी अस्मत को स्वयं नीलाम करती हैं और फिर इस मकडजाल में जानबूझ कर फंसती चली जाती हैं और बाद में अपने दुर्भाग्य के नाम पर सबकुछ मढ़ देती हैं. कुछ तो ऐसी भी हैं जो अपनी लाचारी और दुर्भाग्य के कारण परिस्थितिओं से लड़ने से बेहतर उसके गोद में आत्मसमर्पण कर देती हैं.
अपराजिता का चरित्र अगर आज की नारी सहर्ष ग्रहण कर ले तो गोपालजी जैसे लोगो को बेबस होकर अपनी छवि को सुधारना ही परेगा. एक अपराजिता अपनी अस्मत और चरित्र की रक्षा कर सकती है लेकिन उनका क्या जो स्वयं ऐसे लोगो का शिकार होना पसंद करती हैं कुछ लाचारी के कारण तो कुछ निजी महत्वकांक्षा में निजी स्वार्थ पूर्ति के कारण.
बहुत ही उत्कृष्ट कहानी लिखी है आपने और मैं अनुरोध करूँगा की आप और लिखती रहे इसी तरह जिस से समाज का काला पहलु लोगो के समक्ष उजागर हो सके और दुसरे भी इस से शिक्षा ले सकें.
आर के पाण्डेय "राज"
लखनऊ
श्री पाण्डेय जी ,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको ,जिन्होंने इस कहानी का अच्छी तरह विश्लेषण कर मेरा उत्साह-वर्धन किया .
आपकी प्रेरणा से मैं आगे भी कुछ लिखती रहूंगी .
मैं अपने अन्य शुभ चिंतकों का भी आभार व्यक्त करती हूँ जिनकी वजह से मेरी कलम को एक नई शक्ति मिली है.
very emotional story is it reality?
ReplyDeletemadam this story is very nice and live story in our life. i am very intrested this story and i am heartlly request more story right.
ReplyDeleteaap ki khani pad kar aesa laga ki app bahut suljhi hi lekhak hi. aap ase hi likhti jao.. sabhi aap ko pujege. aap ki kavitao me dard. dukh. purani yaday or apne pita ki vedna chipi hi.. aap ko lakh lakh dhanyavaad...raj sharma.. journalist's. ambala
ReplyDeleteAlka ji, its beautiful touch to my heart please keep on writing more stories.
ReplyDeleteI can say im No 1 fan of yours, may god bless you abudantly and will get success in your future endevadours.
Thanks
Thomas
Dear, You have posted a really heart touching stories which producing the actual scenario of society these days. your thought is marvelous which shows in your stories.
ReplyDeleteWish You a very good luck
keep it up.
Thanks & Regards
Wazir Singh
Advocate of India
Solicitor of England & Wales
अब मर्जी उनकी है , सिर्फ़ दिल ही हमारा है ,
ReplyDeleteवो इस में रहें , न रहें , कह भी नही सकते ,
अपना दर्द छुपा कर बहुत सह लिया हमने ,
वो दर्द सहे , न सहे , कह भी नही सकते ,
हमारा गम है , फसाना नही , जिक्र भी नही ,
वो कुछ कहें , न कहें , कह भी नही सकते ,
मेरी खुश्क आंखों में है आंसुओ का सैलाब ,
अब ये बहे , न बहे , कह भी नही सकते !
--ANIL.
eramj27@gmail.com
eranilj@yahoo.co.in
Mobile nos.--9423481129. and 9922258675.
सुनील गज्जाणी said...
ReplyDeleteek acchi kahani ke liye alka ji ko sadhuwad.
sunil gajjani
कुलवंत हैप्पी said...
ReplyDeleteवैसे तो बहुत सी फिल्मों में अक्सर ऐसा ही होता है, लेकिन लिखने का ढंग़ अच्छा लगा।
Excellent ,, realy good one
ReplyDeletesrory alka ji, maine aap ko pehchanne mai der kar di, aap ki pehchan to yeh, kavitaye, or kahaniya hai, jo dil ki gehrayeeo tak pahuch kar daskat dekar aap ki pechan bata rahi hai.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक कहानी .एक दुखियारी स्त्री ,जो अपने को राजनीती के काबिल समझती है और जीवन में कुछ कर गुजरना चाहती है ; मगर लंगोट के कच्चे नेतालोग किस तरह उसकी मजबूरी को कैश करना चाहते है.
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